Rajasthan Folk Deity: राजस्थान के विभिन्न लोक देवताओं से कई अनूठी मान्यताएं व आस्थाएं जुड़ी हुई हैं। तेरहवीं सदी के बाद से राजस्थान में इस्लाम के प्रवेश, तुर्क आक्रमणों, राजनीतिक संक्रमण व उत्तर भारत के आंदोलन के कारण यहां जन जीवन में एक नया परिवर्तन हुआ था। लोक देवता ने अपनी अलौकिक शक्तियों व लोक मंगल कार्य के लिए वे आस्था का प्रतीक बन गए। अपने वीरोचित कार्य व आत्मबल से समाज में सांस्कृतिक मूल्यों की स्थापना की, धर्म का रक्षा की और जन हितार्थ के लिए अपनी जान भी न्योछावर कर दिए।
लोक देवता मामाजी की पूजा
राजस्थान के जालौर जिले के प्रमुख लोक देवता सोनगरा मामाजी की पूजा की जाती है। यह लोकदेवता और कोई नहीं बल्कि राजा वीर वीरमदेव सोनगरा है, जिन्होंने अल्पायु में युद्ध भूमि में वीरगति को प्राप्त हो गए थे। यहां स्थित ऐतिहासिक मंदिर में मामाजी के सिर की पूजा की जाती है। मंदिर की मान्यता है कि यहां से गुजरता कोई भी राहगीर यदि बिना होरन बजाए या हाथ जोड़े यहां से निकल जाता है तो उसे किसी ना किसी दुर्घटना का सामना करना पड़ता है।
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राजस्थान की अनूठी परंपरा
जब भी कोई राजपूत योद्धा समाज के कल्याण के लिए अपनी जान देता था, तो उसे मामाजी के रूप में पूजा जाता है। बता दें कि पश्चिम राजस्थान में ऐसे कई मामाजी के मंदिर स्थित हैं, जिसमें बाण्डी वाले मामाजी, धोणेरी वीर मामाजी, आदि शामिल हैं। इन्हें बरसाता का देवता भी कहा जाता है। इन मूर्तियों की स्थापना जिले के कुम्हार द्वारा की जाती है, जिसके कारण इन्हें मामाजी के घोड़े कहे जाते हैं।
चढ़ाया जाता है अनोखा भेंट
युद्ध में अपनी जान देने वाले वीर वीरमदेव जी सोनगरा का सिर इस स्थान पर गिरा था, यहीं उनका भव्य मंदिर बनाया गया है। देशभर से लोग यहां अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं। मान्यता है कि वो दीन-दुखियों की सभी इच्छाओं को पूर्ण करते हैं, बांजियों को संतान का सुख देते हैं और सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। मान्यता है कि यहां मन्नत पूरी होने पर लोग लकड़ी के बने घोड़े चढ़ाते हैं।