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Historical Village: राजस्थान के भीलवाड़ा जिला का मांडल कस्बा अपनी ऐतिहासिक राजसी विरासतों, धरोहरों, संस्कृति, रंगारंग जीवन शैली तथा नाहर नृत्य शैली के लिए विश्व में प्रसिद्ध है

Historical Village: राजस्थान देश भर में इकलौता राज्य है जो अपनी ऐतिहासिक राजसी विरासतों, धरोहरों, संस्कृति तथा रंगारंग जीवन शैली के लिए विश्व में प्रसिद्ध है। इन्हीं में एक भीलवाड़ा जिला का मांडल कस्बा भी है, जो ऐतिहासिक ढंग से मेवाड़ के प्रवेश द्वार के नाम से भी जाना जाता है। यह कस्बा अपनी नाहर नृत्य शैली, राजस्थान के सबसे बड़े तालाब तथा 72 खंभों वाली छतरी के लिए विश्व विख्यात है। बता दें मांडल का इतिहास मेवाड़ के दरबार से भी संबंध रखता है। वर्तमान आधुनिक परिदृश्य में भी मांडल राजस्थान की राजनीति, शिक्षा, औद्योगिकीकरण, पशुपालन तथा कृषि के लिए विशेष है।

जानें क्या है भीलवाड़ा के मांडल का इतिहास

रमेश बुलिया के अनुसार मांडल खालसे का प्राचीन समय से ही एक कस्बा रहा है। इसका आशय केंद्र शासित प्रदेश ही है। यह भीलवाड़ा जिले का ऐसा कस्बा है जिसका संबंध ऐतिहासिक तौर पर उदयपुर के मेवाड़ दरबार से भी जुड़ा रहा है। यहां की समस्त समस्याओं का निस्तारण मेवाड़ दरबार के माध्यम से ही निस्तारित किया जाता था। मूल रूप से आसींद-ब्यावर रोड पर स्थित इसकी भीलवाड़ा जिले से दूरी लगभग 20 किमी है। इसकी सबसे बड़ा आकर्षण 14 फीट गहराई वाला और लगभग 4132 बीघा में फैला हुआ राजस्थान का सबसे बड़ा तालाब है। मांडू राव के द्वारा इस विशाल तालाब का निर्माण कराया गया था।

इसलिए इसका नाम पड़ा मांडल

जानकारों के अनुसार कई बुजुर्ग कहते हैं कि मेवाड़ के शासक मांडूराव के नाम पर ही इस कस्बे का नाम मांडल पड़ा है। तो कई अन्य दंतकथाओं के आधार पर एक तथ्य यह भी बताया जाता है कि इस गांव में 24 बगड़ावत भाई गुर्जर समाज के रहते थे, इनमें से एक भाई का नाम मांडल था। इसके अलावा मांडल में 32 खंभों वाली छतरी भी है, जो देश विदेश के पर्यटकों के आकर्षण का एक प्रमुख केंद्र है। इसे जगन्नाथ कच्छावा की स्मृति में मेवाड़ राजघराने द्वारा निर्मित कराया गया था। जब वो महाराणा प्रताप को पकड़ने मेवाड़ आ रहे थे तभी मांडल में उनकी मृत्यु हो गई थी।  

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