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Haldighati Shaurya Diwas: आज के इस लेख में हम आपको बताने जा रहे हैं हल्दीघाटी युद्ध के उन योद्धाओं के बारे में जिनके बारे में आपको किताबों में पढ़ने को नहीं मिलेगा।

Haldighati Shaurya Diwas:  हल्दीघाटी का युद्ध मेवाड़ के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। यह युद्ध भारतीय इतिहास की सबसे प्रतिष्ठित लड़ाईयों में से एक है।  यह युद्ध महाराणा प्रताप और अकबर के नेतृत्व वाली विशाल मुगल सेना के बीच लड़ा गया था। इस युद्ध में महाराणा प्रताप की वीरता का व्यापक रूप से जश्न मनाया जाता है। लेकिन कुछ ऐसे भी प्रमुख योद्धा थे जिन्हें आज के वक्त में लोग नहीं पहचानते हैं। आज के इस लेख में हम आपको बताने जा रहे हैं उन्हीं दो योद्धा के बारे में जिनमें से एक महाराणा प्रताप के छोटे भाई महाराज शक्ति सिंह और ग्वालियर के महाराज राम शाह तोमर है। 

महाराजा शक्ति सिंह 

मेवाड़ की रक्षा में महाराजा शक्ति सिंह की भूमिका काफी बड़ी थी। जब चित्तौड़ की गति महाराणा उदय सिंह संभाल रहे थे तब उन्होंने ही उन्हें सबसे पहले मुगल हमले के बारे में सचेत किया था। उनका सबसे बड़ा योगदान हल्दीघाटी के युद्ध के दौरान था। उन्होंने महाराणा प्रताप का पीछा कर रहे मुगल सैनिकों को मार गिराया था और अपना घोड़ा महाराणा प्रताप को दे दिया था। इस बात से खुश होकर महाराणा प्रताप ने उन्हें राणा वल्लभ की उपाधि दी थी। जिसका अर्थ है राणा का सबसे प्रिय। शक्ति सिंह की विरासत को उन के 17 बेटों के माध्यम से जारी रखा गया जिनमें से 8 से लेकर 10 ने बाद की लड़ाइयों में मेवाड़ की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति थी।आज उनकी समाधि स्थल भैंसरोडगढ़ में चंबल के तट पर स्थित है। यहां उन्होंने अपने जीवन के अंतिम दिन बिताए थे ‌। 

राम शाह तोमर 

आज के दिन एक और महान व्यक्तित्व की गाथा को जरूर याद किया जाना चाहिए। यह है ग्वालियर के महाराजा राम शाह तोमर। महाराणा उदय सिंह ने उन्हें शाहों के शाह के रूप में सम्मानित किया था। मेवाड़ और ग्वालियर के बीच के पारिवारिक बंधन को कायम रखते हुए राम शाह के बेटे राजकुमार शालिवाहन ने महाराणा प्रताप की बहन लीला कंवर से शादी की। 
हल्दीघाटी के युद्ध के दौरान राम शाह तोमर महाराणा प्रताप की सेना के दाहिने विंग का नेतृत्व कर रहे थे। उनके विंग ने ही मुगलों के खिलाफ पहला हमला किया था। इस युद्ध में राम शाह तोमर अपने तीन बेटे और 16 वर्षीय पोते  के साथ शहीद हो गए थे। जिस युद्ध भूमि पर वें शहीद हुए थे उसे आज हम रक्तताल के नाम से जानते हैं।

भूले हुए पराक्रम को याद करना 

आज के इस दौर में हम सभी उन लोगों को भूलते जा रहे हैं जिन्होंने अपनी माटी की रक्षा करने के लिए अपने प्राण तक न्योछावर कर दिए ‌। आज की पीढ़ी और आने वाली पीढ़ी को यह बताना काफी जरूरी है की कैसे हमारे देश की माटी ने बड़े-बड़े वीर योद्धाओं को जन्म दिया और कैसे उन्होंने अपने स्वाभिमान और स्वतंत्रता के लिए जंग लड़ी।

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