Kuchamani Khayal: राजस्थान के कुचामन शहर को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाने वाली लोक नाट्य की ‘कुचामणी ख्याल’ शैली आज लुप्त होने की कगार पर पहुंच गई है। मारवाड़ की प्रसिद्ध इस नाट्य शैली में गीत और नृत्य का अनोखा संगम देखने को मिलता है। शहर की प्रसिद्ध भारतीय संगीत सदन के अध्यक्ष नटवरलाल बक्ता ने बताया कि प्रदेश की बाकी परंपराओं की तरह आज यह कला भी लुप्त होती जा रही है। हमारे सदन द्वारा इसे जीवित रखने के लिए निजी भवन तैयार किया जा रहा है।
आधुनिकता से हुआ शैली का पतन
संगीत सदन के प्रधानाचार्य विनोद आचार्य ने कहा कि नागौर जिले में आधुनिकता अपनाने वाला शहर था कुचामन। इसी शहर में सबसे पहले बिजली की सुविधा उपलब्ध कराई गई थी। साथ ही सिनेमा का चलन भी यही शुरू हुआ था। इस आधुनिकता के चलते समय के साथ साथ शैली का पतन हो गया और आज यह कला केवल नाम मात्र की रह गई है।
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कलाकार को क्यों कहा जाता है खिलाड़ी
राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र से निकलकर कुचामणी ख्याल शैली पूरे राज्य और एमपी के मालवा की प्रसिद्ध लोकरंजन के रूप में सामने आई। राज्य की प्रचलित कलाओं जैसे अखाड़ा-ख्याल दंगल की तरह कुचामणी ख्याल का भी मंचन किया जाता है। खास बात यह है कि इन ख्यालों में काम करने वाले अभिनेताओं को खिलाड़ी कहा जाता है, क्योंकि इसमें मंचन के समय गीत-संगीत व नृत्य का समावेश होता है। मंचन के दौरान कलाकार अपने संवादों को गाने के तरीके से पेश करता हैं। कुचामणी ख्याल को देश-विदेश के स्तर पर ले जाने का कार्य कुचामन के पं. लच्छीराम ने किया।
शैली में होता है हिंदुस्तानी शास्त्रीय रागों का समावेश
भारतीय संगीत सदन के निदेशक रामचंद्र सोनी ने जानकारी दी कि कुचामणी ख्याल में भारत के विभिन्न शास्त्रीय रागों का मेल होता है। इसमें प्रमुख राग मांड की प्रधानता होती है। साथ ही यमन, खमाज, काफी, असावरी, सोरठ, देस, कालिंगड़ा, भैरव और भैरवी समेत कई रागों का भी समावेश होता है।