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RGHS Treatment: राजस्थान में आरजीएचएस‌ अपने उद्देश्य को पूरा करने में कारगर साबित नहीं हो पा रही है। इस वजह से हजारों मरीजों की जेब पर काफी असर पड़ रहा है। आइए जानते हैं पूरी जानकारी।

RGHS Treatment: राजस्थान सरकार स्वास्थ्य योजना संकट में चल रही है। इस वजह से राज्य भर में हजारों मरीज इलाज और दवाइयां के लिए काफी अधिक परेशानियों का सामना कर रहे हैं। आपको बता दें कि सरकारी अस्पतालों में ऑनलाइन आरजीएचएस पर्चों पर लिखी दवाइयां उपलब्धि नहीं हैं। साथ ही बाजार में दवा दुकानों ने भी इस योजना के तहत अपनी सेवाओं को बंद कर दिया है। अब यही कारण है कि मरीजों को अपनी जेब से दवाइयां खरीदने पर मजबूर होना पड़ रहा है। 

दीर्घकालिक रोगियों पर भारी असर 

इसी के साथ निजी अस्पतालों ने भी इस योजना के तहत अपनी इलाज सेवाएं बंद कर दी हैं। इसका कारण है कि राज्य सरकार ने पिछले 8 महीना से कोई भुगतान नहीं किया है, जिस वजह से दवा विक्रेताओं और अस्पतालों दोनों नहीं मुफ्त सेवाओं को बंद कर दिया है।

रक्तचाप, मधुमेह और हृदय रोग जैसी दीर्घकालिक बीमारियों से पीड़ित मरीजों के लिए यह स्थिति काफी ज्यादा गंभीर बन चुकी है। दरअसल इन मरीजों को रोजाना दवाइयां की जरूरत होती है। लेकिन अक्सर ब्रांडेड दवाइयां जो इस योजना के तहत लिखी जाती हैं सिर्फ अधिकृत दवा विक्रेताओं के जरिए से ही मुक्ति मिल पाती हैं। आपको बता दें कि शहर के 85 दवा विक्रेताओं में से सिर्फ 10 ही दवाइयां उपलब्ध करा रहे हैं। इसी के साथ सात में से एक निजी अस्पताल ही इलाज जारी रखे हुए हैं।

ऑडिट में आई चौंकाने वाली गतिविधियां 

चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग द्वारा हाल ही में इस योजना का ऑडिट किया गया था। इस ऑडिट में कई अनियमितताएं उजागर हुई हैं। इसके बाद प्रमुख सचिव गायत्री राठौर ने सभी मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारियों को ओपीडी पर्चियों का 2 साल का प्रिस्क्रिप्शन ऑडिट करने का निर्देश दिया है। 

ऑडिट में सामने आया कि बिना मरीजों की उचित जांच के पर्चे जारी किए गए। इसी के साथ लक्षणों, पिछले चिकित्सा इतिहास और प्रयोगशाला परीक्षणों का विवरण भी गायब रहा। साथ ही एक ही बीमारी के लिए परिवार के अलग-अलग सदस्यों को महंगी दवाई लिखी गई। इसी के साथ बिना बैंक ओपीडी पर्ची संख्या या फिर जांच रिपोर्ट के बिल जारी किए गए। 

प्राधिकृत दवा विक्रेताओं की हड़ताल 

इसी बीच भुगतान न मिलने की वजह से निराश होकर अधिकृत दवा विक्रेताओं ने हड़ताल करती है। अब निजी अस्पतालों और दवा विक्रेताओं दोनों के पीछे हटने से आरजीएचएस पर निर्भर मरीजों के पास अपनी जेब से भुगतान करने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा।

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