rajasthanone Logo
Jodhpur Kuldevi: माता नागणेच्या को जोधपुर की कुलदेवी के रूप में पूजा जाता है। विक्रम संवत 1523 में राजा राव जोधा ने माता की मूर्ति को मेहरानगढ़ में स्थापित कराई थी। मान्यता है कि इस मूर्ति को राव धूहड़ खुद नहीं लेकर आए थे, बल्कि उनके पुरोहित सारस्वत ब्राह्मण कन्नौज से लेकर आए थे।

Jodhpur Kuldevi: राजस्थान के जोधपुर में माता नागणेच्या को समाज की कुलदेवी के रूप में पूजा जाता है। शहर के संस्थापक राव जोधा ने विक्रम संवत 1523 में माता नागणेच्या की मूर्ति की स्थापना मेहरानगढ़ में कराई थी। जानकारी के लिए बता दें कि मारवाड़ में राठौड़ों का आगमन 13वीं सदी के मध्य में हुआ था।

जोधपुर से लगभग सौ किमी की दूरी पर स्थित पचपदरा परगने के गांव नागाणा में राठौड़ वंशज राव धूहड़ ने प्रतिहार थिरपाल को हराकर मंदिर में माता नागणेच्या की मूर्ति की स्थापना की थी। मान्यता है कि इस मूर्ति को राव धूहड़ खुद नहीं लेकर आए थे, बल्कि उनके पुरोहित सारस्वत ब्राह्मण कन्नौज से लेकर आए थे।

ये भी पढ़ें:- Rajasthan Tradition: राजस्थान में मानसून आह्वान की अनूठी परंपरा...जिसमें कपड़े की गुड़ियां बनाकर करते हैं अंतिम संस्कार

हाथों में है शंख 

राठौड़ों की कुलदेवी माता नागणेच्या की प्राचीन मूर्ति में माता नागणेच्या के सिर पर नाग बना हुआ है। साथ ही उनके हाथों में शंख और चक्र भी हैं। नागणेच्या माता मंशा देवी, राठेश्वरी, पंखणी माता के नाम से भी प्रसिद्ध है। माता नागणेच्याजी का मंदिर मेहरानगढ़ के जनाना महल से दाय की ओर बना हुआ है। मंदिर में आपको चार गर्भगृह में हिंगलाज, सिंगलाज माता, चतुर्भुज और शिव-पार्वती की चांदी की मूर्तियां स्थापित हैं। माना जाता है कि इस मंदिर में माता के आगे सिर झुकाने से भक्त के सारे कष्ट दूर हो जाते है। 

मंदिर से जुड़ा इतिहास 

बता दें कि जोधपुर महाराजा जसवंसिंह ने राज्य पर राज किया, उनके स्वर्गवास के बाद औरंगजेब ने राज्य पर कब्जा किया और यहां के सभी मंदिरों को नष्ट करने का आदेश दिया। इस दौरान अमरसिंह राठौड़ के पुत्र इन्द्रसिंह ने मंदिरों की मूर्तियों को बचाने का कार्य शुरू कर दिया। वे मूर्तियों को लेकर नागौर चले गए, इसके बाद महाराजा अजीतसिंह ने किले पर दुबारा अपना अधिकार लिया और इन मूर्तियों को नागौर से लेकर पुन: प्रतिष्ठित किया था।

5379487