Guru Jambheshwar: राजस्थान के नागौर जिले में कृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर बिश्नोई समाज के गुरु जंभेश्वर जी का जन्म हुआ था। बीकानेर के नोखा इलाके में आसोज अमावस्या पर हर साल गुरु जम्भेश्वर के मुकाम धाम में भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। इस मेले में देशभर से समाज के लोग इकट्ठा होते हैं। जांभोजी के पिता पंवार गोत्रिय राजपूत थे और उनकी माता हंसा देवी उन्हें भगवान श्रीकृष्ण का अवतार मानती थी। माता पिता के निधन के बाद उन्होंने अपनी पूरी संपति गरीबों को दान कर दी थी।
34 साल की उम्र में की थी बिश्नोई पंथ की स्थापना
सारी संपत्ति जनहित में दान करने बाद वे समराथल धोरे पर रहने लगे। यहां उन्होंने 34 साल की उम्र में बिश्नोई पंथ की स्थापना की थी। बीकानेर के तत्कालीन समराथल धोरे पर कार्तिक वदी अष्टमी को यह स्थपना की गई थी। बता दें कि सन् मिंगसर वदी नवमी के मौके पर लालासर में गुरु जम्भेश्वर निर्वाण को प्राप्त हुए थे। आज भी मुकाम गांव में उनका समाधि स्थल मौजूद है।
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संत विल्होजी ने की थी मेले की शुरुआत
हर साल फाल्गुन अमावस्या व आसोज अमावस्या के अवसर पर मंदिर में सालाना दो बार मेले का आयोजन किया जाता है। माना जाता है कि फाल्गुन अमावस्या के मेले की शुरुआत 1591 ई. में संत विल्होजी द्वारा की गई थी। अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा और अखिल भारतीय गुरु जम्भेश्वर सेवक दल मिलकर इस भव्य मेले का आयोजन करते हैं। इस दौरान हरियाणा, राजस्थान व पंजाब से लोग यहां आते हैं और मंदिर में मत्था टेकते हैं।
मुक्तिधाम के नाम से प्रसिद्ध है जगह
बीकानेर जिला मुख्यालय से करीब 63 किलोमीटर व नोखा तहसील से करीब 15 किलोमीटर दूर गुरु जम्भेश्वर के मुकाम धाम स्थित है। इसी जगह पर एकादशी के दिन गुरु जम्भेश्वर को समाधि दी गई थी। इस स्थान को आज भी लोग मुक्तिधाम के नाम से जानते हैं। मान्यता है कि गुरु महाराज ने समाधि लेने से पहले खेजड़ी व जाल के पेड़ को अपनी समाधि का चिह्न बनाया था, उसी स्थान पर उनकी समाधि का निर्माण कराया था। इतिहासकारों के मुताबिक समाधि देने के लिए जब जमीन के नीचे खुदाई की गई थी तब वहां एक त्रिशूल मिला था, आज भी गुरु की समाधि पर यह त्रिशूल स्थापित किया गया है।
29 नियम की आचार संहिता
बिश्नोई समाज के लोगों के लिए गुरु जम्भेश्वर ने 29 नियम की आचार संहिता बनाई थी और जो लोग इन बीस और नौ नियमों का मानते हैं उन्हें बिश्नोई कहा जाता है।