Achalgarh Kila: राजस्थान को किलों और राजघराने की भूमिका कहा जाता है। यहां पर वास्तु कला के कुछ ऐसे चमत्कार हैं जो इतिहास और रहस्य से भरे हुए हैं। आज के इस लेख में हम आपको बताने जा रहे हैं, एक ऐसे ही चमत्कार के बारे में। माउंट आबू से मात्र 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित अचलगढ़ किला शाही भव्यता और छुपे हुए खजाने की कहानियां से लिप्त है।
एक गौरवशाली अतीत
इस किले का पुनर्निर्माण 1452 ई में महाराणा कुंभा ने किया था। महाराणा कुंभा दक्षिण राजस्थान के कुछ सबसे भव्य किलों के निर्माण के लिए जाने जाते हैं।
जुड़वा मंडप
इस किले में दो मंडप है। एक सभा मंडप और दूसरा पूजा मंडप। सभा मंडप में शाही दरबार लगता था। जहां पर राजा और दरबारी महत्वपूर्ण बैठक किया करते थे। इस मंडप में नक्काशीदार खंभे और विस्तृत राजपूत वास्तुकला उस समय की भव्यता को काफी अच्छे से दर्शाते हैं । इसी के साथ पूजा मंडप में अनुष्ठान और पूजा की जाती थी।
अखिलेश्वर महादेव मंदिर
इस किले के अंदर एक अनोखा अचलेश्वर महादेव का मंदिर भी है। इस मंदिर की खास बात यह है कि यहां पर भगवान शिव के पैर की अंगुली की पूजा की जाती है। इस मंदिर के बाहर पांच धातुओं से बने एक विशाल नंदी बैल की मूर्ति भी है। ऐसा कहा जाता है कि नंदी दिन में तीन बार रंग बदलते हैं।
मंदाकिनी झील
इसके लिए के भीतर एक मंदाकिनी झील है। जिसमें औषधीय पानी भरा रहता था। ऐसा कहा जाता है कि यह झील घी से भी भरी रहती थी और ऋषि मुनि इसी में से घी निकाल के यज्ञ किया करते थे।
खजाने और गुप्त गुफाएं
सबसे दिलचस्प रहस्य में से एक है यहां की गुप्त गुफाएं। स्थानीय लोग गुफा की दीवारों पर उकेरी गई रहस्यमई प्रतीकों के बारे में बातें करते हैं। लोगों के अनुसार यह प्रतीक अंदर गहरे दबे खजाने की मौजूदगी का संकेत देते हैं।
आगंतुक सूचना
यह किला सुबह पांच बजे से शाम के सात बजे तक खुला रहता है। इस किले के कुछ क्षेत्र ही पर्यटकों के लिए खुले हुए हैं। यहां के गुंबद और गुफाएं अभी भी प्रतिबंधित है। यहां आप मानसून के बाद और सर्दियों के महीने में घूमने के लिए आ सकते हैं।