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Rajasthan History: राजस्थान की पिंक सिटी जयपुर से करीब 85 किमी की दूरी पर स्थित बैराठ में आज भी मौर्य काल और उसके पीछे के काल के कई अवशेष पाए जाते हैं। बैराठ का इलाका आठ किलोमीटर लंबाई और पांच किलोमीटर चौड़ाई तक फैला हुआ है।

Rajasthan History: बौद्ध धर्म के इतिहास से जुड़ा एक अहम हिस्सा राजस्थान की पिंक सिटी जयपुर से करीब 85 किमी की दूरी पर स्थित बैराठ में मौजूद है। प्राचीन ग्रंथों के मुताबिक इस स्थान को विराटनगर के नाम से भी जाना जाता था, जो प्राचीन समय के मत्स्य प्रदेश की राजधानी हुआ करती थी। बैराठ का इलाका आठ किलोमीटर लंबाई और पांच किलोमीटर चौड़ाई तक फैला हुआ है। यह पूरा क्षेत्र पहाड़ियों और घने जंगलों से घिरा हुआ है।

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कस्बे के चारों तरफ टीले ही टीले दिखाई देते हैं। इन टीलों में प्रसिद्ध बीजक की पहाड़ी, महादेव जी की डूंगरी और भोमजी की डूंगरी स्थित हैं। यहां आज भी मौर्य काल और उसके पीछे के काल के कई अवशेष पाए जाते हैं। खुदाई के दौरान मिली सामग्री से यह अनुमान लगाया जाता है कि यह इलाका सिंधु घाटी सभ्यता के प्रागैतिहासिक काल का है। यदि आप इतिहास में रूचि रखते है और इन अवशेषों के बारे में जानकारी लेना चाहते हैं तो यह स्थान जयपुर के करीब ही स्थित है। 

पाए जाते हैं खंडहर के अवशेष

हालांकि इस क्षेत्र में पत्थरों की कमी नहीं है, लेकिन फिर भी यहां के घरों को बनाने में ईंटों का ही अधिक उपयोग किया है। यहां मौजूद मठ, स्तूप, मंदिर, मकान, चबूतरे आदि का निर्माण मिट्टी को पका कर ईंटों से ही किया गया है। खास बात यह है कि इन ईंटों की बनावट बिल्कुल मोहनजोदड़ो के समय की ईंटों के समान है। अनुमान लगाया जाता है कि इन ईंटों से ही बौद्ध मठ का निर्माण किया जाता होगा। यहां एक खंडहरनुमा भवन की भी खोज की गई है, जिसमें छह से सात छोटे कमरे बने हुए हैं। भवन के आसपास यह ईंटें बिखरी हुई पाई गई थी। विद्वानों ने बताया कि यह किसी बौद्ध मठ का खंडहर है। इसकी दीवारें लगभग बीस इंच मोटी हैं। 

गोल मंदिर के अवशेष 

इस स्थान पर बौद्ध मठ के अलावा गोल मंदिर के भी कई अवशेष पाए गए हैं। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण अशौक ने कराया था। मंदिर के परिसर में ईंटें पड़ी हुई हैं, साथ ही मंदिर के द्वारा का निर्माण लकड़ी से किया गया है। इन्हें लोहे की बड़ी कीलियों व कब्जों से टिकाया जाता होगा।

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