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Rajasthani Print: राजस्थान के चित्तौड़गढ़ के एक छोटे से गांव चिपो का अकोला की दाबू प्रिंट दुनियाभर में प्रसिद्ध है। खास बात यह है कि इस प्रिंट को तैयार करते समय कपड़ों की रंगाई से लेकर छपाई तक का सारा काम हाथों से ही किया जाता है। इसमें किसी प्रकार की कोई आधुनिक मशीन का उपयोग नहीं होता है।

Rajasthani Print: राजस्थान की रंग बिरंगी कला आज भी यहां के कपड़ों में दिखाई पड़ती है। चित्तौड़गढ़ की 'छिपो का अकोला' की कला राज्य की प्रसिद्ध कलाओं में से एक है। पांच सौ साल पुरानी इस कला में आज भी किसी मशीन का उपयोग नहीं किया जाता है, बल्कि इसे अपने हाथों से ही तैयार किया जाता है।

इसे दाबू प्रिंट या अकोला प्रिंट के नाम से भी जानते है। जिले की बेड़च नदी के किनारे बसे चिपो का अकोला गांव में आज भी लोग हाथों के हुनर से यह कारीगरी करते हैं। खास बात यह है कि इस प्रिंट को तैयार करते समय कपड़ों की रंगाई से लेकर छपाई तक का सारा काम हाथों से ही किया जाता है। इसमें किसी प्रकार की कोई आधुनिक मशीन का उपयोग नहीं होता है। 

पूरी प्रक्रिया 

दाबू प्रिंट में कपड़े को रंगने के लिए कई प्रकार की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता हैं। इसके लिए सबसे पहले एक कपड़े को सही आकार में काटा जाता है, फिर इसे पूरी रात पानी में भिगोकर रखा जाता है। दूसरे दिन अच्छी तरह सुखाकर कपड़े पर छपाई का कार्य शुरू किया जाता है। छपाई के लिए एक लकड़ी के ब्लॉक को काली मिट्टी के एक घोल में डुबोकर छपाई का कार्य किया जाता है।

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इस कला में दो प्रकार की रंगाई व छपाई की जाती है। पारंपरिक छपाई में महिलाओं द्वारा पहने जाने वाली चुंदड़ी और लहंगे की तरह पहने जाने वाले फेटिया तैयार किए जाते हैं। इस इलाके में इनकी खूब बिक्री होती है। इसके अलावा देश व विदेश की विभिन्न डिजाइनों को भी कपड़े पर उकेरा जाता है। यहां का छिपो समुदाय का परिवार पिछले कई सालों से इस कला से जुड़ा हुआ है। 

क्यों कहते है दाबू प्रिंट?

इस कला के तहत एक बड़े से बर्तन में कपड़े को उबलते पानी में दाबू प्रिंट किया जाता है। जिसके बाद कपड़े पर लगी मिट्टी व मेण से बने मोम को लकड़ी के एक दाबू की मदद से हाथों से दबाकर हटाया जाता है। इसी कारण से इसे दाबू प्रिंट कहा जाता है। जैसे ही कपड़े से मोम हटता है, उसपर दाबू के जरिए डिजाइन उभरकर आता है।

अनूठी बात यह है कि इस कला में विभिन्न कपड़ों की रंगाई व छपाई के लिए अलग-अलग प्रकार के क्वालिटी के कपड़े इस्तेमाल किए जाते हैं। आखिरी प्रक्रिया में कपड़े के सूखने के बाद उसकी धुलाई की जाती है। इस पूरी प्रक्रिया में आठ से दस दिन का समय लगता है। देश के विभिन्न राज्यों समेत विदेशों से लोग यहां आकर खास इस प्रिंट को खरीदते हैं और ऑर्डर करवाते हैं। 

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