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Sikar ke Pede: आज के इस लेख में हम आपको बताने जा रहे हैं राजस्थान की एक ऐसी मिठाई के बारे में जो देश-विदेश में अपना नाम खूब फैला रही है। हम बात कर रहे हैं चिराना के घासी जी के पेड़ों के बारे में।

Sikar Ke Pede:  एक छोटे से गांव चिराना में एक मिठाई की दुकान देश-विदेश में खूब नाम कमा रही है। यहां की एक मिठाई न केवल भारत में बल्कि इटली, जापान और ईरान जैसे देशों में भी अपने स्वाद का झंडा लहरा रही है। हम बात कर रहे हैं घासी जी के मशहूर पेड़े की। आईए जानते हैं क्या है इन पेड़ों की खास बात। 

50 साल पुरानी मिठाई की परंपरा 

यह कहानी पांच दशक पहले शुरू हुई थी। घासी जी महाराज ने एक पुरानी और प्रामाणिक विधि का इस्तेमाल करके इस मिठाई को बनाना शुरू किया था। वर्तमान में उनके पोते विष्णु शर्मा ने उनकी इस विरासत को आगे बढ़ाया है।  इस मिठाई का स्वाद बिल्कुल नहीं बदला है। आज भी यह सात्विक, शुद्ध और पुराने तरीके से ही बनाई जा रही है। 
विष्णु शर्मा का बचपन अपने दादा को इन मिठाइयों को पूरी लगन से बनाते हुए देखकर ही बीता है। इसके बाद उन्होंने परिवार की परंपरा को अपनाया और इस मिठाई को ब्रांड में बदल दिया। 

क्यों है यह पेड़े इतने खास?

घासी जी के पेड़े शुद्ध भैंस के दूध से बनते हैं। इसी के साथ इन्हें लकड़ी की भट्टी पर घंटे तक उबाला जाता है। जब दूध सही स्थिरता पर पहुंच जाता है तो उसमें चीनी डालकर मिश्रण को छोटे गोल पेड़ों के आकार का बना लिया जाता है। यहां पर पेड़े गैस की जगह पारंपरिक तरीके से लकड़ी पर धीमी गति से पकाए जाते हैं। विष्णु शर्मा कहते हैं कि गैस पर पेड़ा जल्दी तो बन जाता है लेकिन उसमें स्वाद नहीं होता। 

विदेशों तक फैला नाम 

घासी जी के पेड़े चिराना से कहीं आगे तक पहुंच चुके हैं। जो भी लोग विदेश यात्रा करते हैं वह अक्सर इस मिठाई को डिब्बे में अपने साथ ले जाते हैं। इसी के साथ शादी और विशेष आयोजनों में यहां पर थोक में आर्डर दिए जाते हैं। ‌ जापान, इटली, दुबई, ईरान और इराक जैसे दूर दराज देश में भी इस मिठाई की मांग बढ़ रही है। इतनी मांग के बढ़ने के बावजूद भी उन्होंने इसे किसी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर विस्तार नहीं किया। उनका मानना है कि इस मिठाई का परंपरा के साथ बने रहना ही अच्छा है। साथ ही इसके पारंपरिक रूप के साथ समझौता नहीं किया जा सकता।

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