History of Bhawani Natyashala: राजस्थान अपनी कला और संस्कृति के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है। यहां प्राचीन काल से ही कला और मनोरंजन को बढ़ावा दिया जाता रहा है। इसका जीता जागता उदाहरण राजस्थान के झालावाड़ गढ़ परिसर में स्थित 'भवानी नाट्यशाला' है। इसकी स्थापना 16 जुलाई 1921 को पूर्व नरेश भवानी सिंह ने की थी। यह ओपेरा शैली में निर्मित उत्तर भारत का एकमात्र नाट्यशाला है।
आपको बता दें कि भवानी नाट्यशाला की तीन मंजिला इमारत अपनी भव्यता को प्रस्तुत करती है। इसकी संरचना ऐसी है कि कलाकारों की आवाज बिना माइक के पूरी इमारत में पहुंचती है, जो अपने आप में अद्भुत है। इसके किसी भी हिस्से में बिना पंखे के भी बैठा जा सकता है। एक समय में इसके मंच पर देश-विदेश के नाटकों का मंचन हुआ करता था। जो बीते सालों में अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है।
भवानी नाट्यशाला की विशेषताएं
जानकारी हो कि 61 फीट लंबी और 48 फीट चौड़ी भवानी नाट्यशाला कुल 87 खंभों पर टिकी है। खंभों में कला का जादू देखा जा सकता है। मंच की बनावट अद्भुत है जिसने पूरी दुनिया में अपनी पहचान बनाई है। लकड़ी से बने इस मंच को कभी भी ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर ले जाया जा सकता है।
इसकी संरचना ऐसी है कि विशाल रथों का काफिला सीधे मंच तक पहुंच सकता है। इस नाट्यशाला के मंच पर नाटक के दृश्यों के अनुसार अंधेरे में भी कलाकारों को दिखाया जा सकता है और ध्वनि और प्रकाश के माध्यम से तैराकी जैसे पात्रों को सीधे दिखाया जा सकता है।
भवानी नाट्यशाला के यादगार पल
भवानी नाट्य शाला में पहला नाटक 16 जुलाई 1921 को महाकवि कालिदास द्वारा रचित 'अभिज्ञान शाकुंतलम' का मंचन हुआ था। अगर इसके मंच पर आखिरी बार मंचित नाटक की बात करें तो 1950 में 'देश की आवाज़' दिखाया गया था। प्राचीन काल में भवानी नाट्य शाला देश-दुनिया में बहुत लोकप्रिय थी।
मालूम हो कि यहां राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर के कलाकार भी प्रस्तुति दे चुके हैं। इनमें विश्व प्रसिद्ध सितार वादक पंडित रविशंकर और उनके भाई उदय शंकर का नाम भी शामिल है।
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