Rajput Wedding Rituals: हिंदु धर्म में शादी के दौरान मांग भरना, मंगलसूत्र पहनाना और फेरे लेने जैसी महत्वपूर्ण रस्में निभायी जाती हैं। ये तीनों रस्में ही किसी भी शादी के लिए आवश्यक हैं, क्योंकि इनके बिना कोई भी शादी संपन्न नहीं मानी जाती है। ये रस्में हमारी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जो सालों से चलती आ रही परंपराएं हैं।
ये रीति-रिवाज किसी समुदाय द्वारा नहीं बल्कि सभी हिंदू परिवारों द्वारा निभाए जाते हैं। यजुर्वेद में 7 वचन और 4 फेरे लेने का रिवाज था, जिसे बढ़ाकर 7 कर दिया गया है। लेकिन राजस्थान का एक ऐसा समुदाय है जिसमें लोग आज 4 फेरे लेते हैं, जिसके पीछे उनकी एक मान्यता है।
7 नहीं बल्कि 4 फेरे की परंपरा
राजस्थान के राजपूत समाज में फेरे को लेकर एक मान्यता है, जिसमें उस मान्यता के आधार पर राजपूत समाज में लोग 7 फेरों की जगह 4 फेरे लिए जाते हैं। जिसमें माता पिता द्वारा कन्या दान करने के बाद ही फेरे शुरू किए जाते हैं। इन 3 फेरों में दुल्हन को आगे रखा जाता है, उसके बाद दूल्हे को 1 फेरे के दौरान आगे रखा जाता है।
वेद में 4 फेरो का अर्थ
इन फेरों का वेदों के आधार पर अलग अलग महत्व है, जिसमें पहले फेरे में बताया गया है कि शादी के बाद आपको अपना धर्म पालन करना नहीं छोड़ना है और इस फेरे में धर्म के रास्ते पर चलने के लिए कहा गया है। वहीं दूसरे फेरे में धन के बारे में बताया गया है, जिसमें भगवान उनको जितना देगा उतने में सुख और प्रसन्नता से रहना होगा। इसके बाद तीसरे और चौथे फेरे में काम और मोक्ष के बारे में बताया गया है।
क्या है 4 फेरों की मान्यता
राजपूत के सभी घरानों के लोगों द्वारा 4 फेरे लिए जाने की रस्म नहीं बल्कि जिनके लोक देवता पाबूजी राठौड़ हैं, उन्हीं राजपूत परिवारों में 4 फेरे लिए जाते हैं। इसमें लोक देवता पाबूजी राठौड़ का विवाह हो रहा था, तब उस समय उनको पता चला कि गांव में एक वृद्ध महिला की गाय को लुटेरे ले गए हैं।
उसके बाद पाबूजी 4 फेरों में ही विवाह को सम्पन्न कर पशु रक्षा वचन के कारण उस गाय को बचाने चले गए, इसके बाद से ही राजस्थान में पाबूजी को पूजने वाले राजपूतों ने भी 4 फेरे लेने शुरू कर दिए और आज तक निभाते आ रहे हैं।
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