Butati Dham: राजस्थान के नागौर जिले से लगभग पचास किलोमीटर अजमेर मार्ग पर स्थित बुटाटी धाम को लेकर मान्यता है कि कैसा भी लकवे का मरीज हो, अगर सात दिन/रात यहां रहकर पूजा-परिक्रमा करे तो निश्चित तौर पर बेहतर हो जाता है। और यह प्रताप है करीब छः शताब्दी पूर्व चारण कुल में जन्मे बाबा चतुरदास का। जिन्होंने अपनी विशाल संपत्ति बेच दी, और लोगों की भलाई में लगा दी। कहते हैं कि वे किसी भी तरह के लकवाग्रस्त रोगी को पूरी तरह चंगा कर देने की क्षमता रखते थे। मंदिर में आने वाले लोगों को रहने और खाने की व्यवस्था मुफ्त मुहैया कराई जाती है। पर इसके अलावा, यह क्षेत्र ‘जई’ जैसे महत्वपूर्ण कृषि उत्पादन, कृषि यंत्र और लकड़ी से बने खिलौनों के लिए भी प्रसिद्ध है..
पारंपरिक कृषि-यंत्र का निर्माण
बुटाटी धाम का क्षेत्र लकड़ी से बने पारंपरिक कृषि यंत्र के विक्रेताओं की पसंदीदा जगह है। यहां से वे तरह-तरह के लकड़ी से बने कृषि क्षेत्र के तमाम उपयोगी यंत्र ले जाते हैं, और देश के विभिन्न इलाकों में उसकी बिक्री करते हैं। जई उत्पादन से संबंधित ज्यादातर यंत्र आपको यहां किफायती दर पर मिल जायेंगे; जिनमें से अधिकांश फसल की कटाई के बाद काम आते हैं।
हर घर पारंपरिक खिलौने बनाने की कारखाना
बुटाटी धाम क्षेत्र के गांव में आपको लगभग हर तीसरा घर लकड़ी के यंत्र और खिलौनों को बनाने वाला मिलेगा। यहां लकड़ी के पारंपरिक खिलौने भी बड़ी मात्रा में बनाया जाता है। हालांकि स्थानीय लोगों के मुताबिक आजकल प्लास्टिक आदि के बने खिलौनों की मांग बढ़ने से उनके पारंपरिक लकड़ी के खिलौनों की मांग पर सीधा असर पड़ा है। पर उनकी यह कला अब भी जीवित है। यानी आप लकवे के इलाज के अतिरिक्त, लकड़ी से बने पारंपरिक कृषि-यंत्रों और खिलौनों के लिए भी बुटाटी धाम आ सकते हैं। यहां देश-विदेश से साल भर लोग आते-जाते रहते हैं।
बुटाटी गांव की जई की पूरे राजस्थान में धूम
बुटाटी गांव में बनने वाली जई बुटाटी क्षेत्र के अलावा पूरे राजस्थान में जाती है। इस गांव में लगभग छह सिंग तक की जई बनाई जाती है। यहां से व्यापारी बड़े स्तर पर लकड़ी के उपकरण की खरीदारी कर अपने शहर लेकर जाते हैं।
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