Organic Farming: जयपुर से सटे कालवाड़ के कंवर के निवासी सुरेश कुमाव, किसान ने खेती के प्रति अपनी सोच में बड़ा बदलाव लाते हुए न केवल अपनी पैदावार बढ़ाई है बल्कि गांव के अन्य किसानों के लिए भी प्रेरणा बन गए हैं। पहले जहां गांव में यह मान्यता थी कि डीएपी और यूरिया डाले बिना फसल तैयार ही नहीं हो सकती, वहीं अब यह किसान बिना रासायनिक खाद के खेतों में उत्कृष्ट उत्पादन लेकर दिखा रहा है। रासायनिक खेती को न सिर्फ जैविक खेती में बदला बल्कि फसलों को कीटो-रोगों से भी सुरक्षित रख रहे हैं। इसके साथ ही जमीन की उर्वरा शक्ति भी बढ़ा रहे हैं। इसके साथ ही किसान सुरेश ने बताया कि वह खेती के साथ निर्माण कार्य भी करते हैं। वहीं कुछ साल पहले वे जयपुर में कैंसर हॉस्पिटल में निर्माण का काम कर रहे थे। जहां उन्होंने कैंसर के मरीजों को देखा जिससे उनकी रूह कांप गई।
रासायनिक खेती कैंसर बीमारी का सबसे बड़ा कारण बन रही
वहीं रासायनिक खेती इस बीमारी का सबसे बड़ा कारण बन रही है। वहीं गांव के लोग कहते थे कि यूरिया और डीएपी डाले बिना खेती नहीं हो सकती। इसके बाद उन्होंने लोगों की इस सोच को बदलने की ठान ली। उन्होंने बताया कि शुरू में तो यूरिया का असर कम करने पर काम किया। यूरिया को खेत में सीधा डालना बंद किया ताकि उसका असर कम हो। इसके लिए उन्होंने ड्रम में डालकर उसे घोला और उसके ऊपर आए झाग को बाहर निकाल कर सिंचाई के साथ पानी खेत में डाला। शुरुआत में उत्पादन कम हुआ, लेकिन उसका परिणाम यह निकला कि वे अब खेती में यूरिया बिल्कुल भी नहीं डाल रहे हैं।
खेत में एक बार चूना डालते हैं
यूरिया की कमी पूरी करने के लिए खेत में एक बार चूना डालते हैं। पानी के साथ मिट्टी तक पहुंचाते हैं। इसके साथ उन्होंने जैविक मिश्रण बताया कि इस मिश्रण को बनाने के लिए वह 10 लीटर गोमूत्र, 10 किलो देसी घी, गाय का गोबर 2 किलो, देसी गुड़ 2 किलो, बेसन 2 किलो, बड़- पीपल के पेड़ के नीचे की मिट्टी दो किलो, 1 किलो नीम के पत्ते, आंकड़ा, कोई भी फूल, प्याज के छिलके 100 ग्राम तंबाकू पत्ती मिलाकर सभी को पीस लेते हैं। इसे वे हर रोज सुबह हिलाते हैं, फिर 20 दिन के बाद भी मिश्रण को छानकर ड्रिप या सिंचाई के साथ फसलों में डालते हैं।
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मिश्रण से हो रहे दो फायदे
इस मिश्रण को खेत में डालने से दो फायदे हो रहे हैं। पहला फसल में छोटे कीड़े या रोग नहीं लगते हैं। दूसरा जमीन की उपजाऊ की क्षमता भी बढ़ रही है। यूरिया के उपयोग से मिट्टी में केंचुए खत्म हो जाते हैं या नीचे चले जाते हैं। इससे केंचुए भी हो रहे हैं।








