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Date Cultivation: राजस्थान के जैसलमेर व बाड़मेर जिलों में खजूर की खूब खेती की जाती है, लेकिन पाली जैसे पहाड़ी इलाके में नई तकनीकों की मदद से रिटायर्ड आईएएस द्वारा खजूर की खेती की जा रही है। इससे जिले के किसानों को काफी अच्छा मुनाफा हो रहा है।

Date Cultivation: भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक पूर्व अधिकारी ने राजस्थान के रेगिस्तान से लेकर यहां के पहाड़ों की खेती की तस्वीर बदल दी है। पाली जिले के रहने वाले रिटायर्ड आईएएस सिद्धार्थ कुमार सिंह द्वारा खेती में विभिन्न तकनीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है। 'टिश्यू कल्चर टेक्नोलॉजी' की मदद से उन्होंने इराक के बरही नस्ल के खजूर की खेती मारवाड़ के शुष्क जलवायु में कर दिखाई है। आज इस प्रकार की खेती का फायदा पूरे जिले को हो रहा है। 

जिले को हो रहा लाभ 

पाली जिले के पास के रूपवास गांव की पहाड़ियों के पास ही पांच हेक्टेयर में 500 से ज्यादा खजूर के पेड़ लगाए गए हैं। इन पर लगने वाले खजूरों की डिमांड न केवल भारत में बल्कि विदेशों से भी आती है। यदि इस तकनीक से राजस्थान किसान विदेशी नस्ल के खजूर की खेती करते हैं तो उन्हें अच्छा मुनाफा होगा। 

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कितनी है खजूर के एक टिशू के पौधे की कीमत?

राज्य में जहां करीब दस साल पहले खजूर का एक एक टिशू का पौधा 2500 रुपए में मिल जाता था, वहीं आज इसकी कीमत करीब चार हजार से ज्यादा हो गई है। हालांकि पहले सरकार की ओर से इस पर 90 प्रतिशत तक की सब्सिडी दी जाती थी, लेकिन अब इसे घटाकर 75 प्रतिशत कर दिया गया है। 

40 साल तक खजूर देता है एक पेड़ 

खजूर का पेड़ लगभग तीन से चार साल बाद फल देना शुरू करता है, यदि पेड़ों की अच्छी तरह देखभाल की जाए तो 40 साल तक यह पेड़ फल देते हैं। राजस्थान के जैसलमेर व बाड़मेर जिलों में खजूर की खूब खेती की जाती है, लेकिन पाली जैसे पहाड़ी इलाके में नई तकनीकों की मदद से इसे उभरा जा रहा है। 

मुस्लिम देशों से आती है भारी डिमांड 

पेड़ों से उतारने के बाद इनकी कटाई का कार्य किया जाता है। इन्हें तीन विभिन्न कैटेगरी में 25 किलोग्राम के रैक में तैयार किया जाता है, जिसके बाद उन्हें मंडी में भेजा जाता है। यहां बाजार में लगभग 60 से 70 रुपए प्रति किलो के भाव से बेचे जाते हैं। भारत के अन्य राज्यों के साथ-साथ मुस्लिम देशों से इनकी भारी मांग आती है।

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