Sitamata Wildlife Sanctuary Rajasthan: राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले में एक जंगल स्थित है। जिसे धार्मिक आस्था से जोड़कर भी देखा जाता है। मान्यता है कि इस जंगल में माता सीता और प्रभु श्रीराम के पुत्रों ने हनुमान जी को रस्सियों से बांधने वाला वाक्य घटित हुआ था। इसलिए इस जंगल का नाम सीतामाता अभ्यारण्य रखा गया। जिसके बारे में लोगों को बहुत कम जानकारी है। हालांकि इसे ईको टूरिज्म के रूप में विकसित करने का प्रस्ताव फ़ाइलों में दफन है। वन विभाग ने इस अभ्यारण्य के लिए 2.5 करोड़ रुपए का प्रस्ताव तैयार करके प्रदेश सरकार को भेजा था। जिससे इस अभ्यारण्य को ओर भी ज्यादा बेहतर बनाया जा सके। साथ ही पर्यटकों की धार्मिक आस्था भी इस स्थान से काफी ज्यादा थी। इसलिए इस प्रस्ताव का मकसद इस अभ्यारण्य की ओर भी ज्यादा पर्यटकों को आकर्षित करना था, लेकिन यह मकसद दूर दूर तक पूरा होता नहीं दिख रहा है और अब यह योजना दम तोड़ती दिखाई दे रही है।
वन विभाग ने जो प्रस्ताव भेजा था, उसमें सीतामाता अभ्यारण्य के प्राकृतिक सौंदर्य से लेकर सीता माता नाम के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के बारे में लिखा गया था। इसे लेकर एक मान्यता यह भी है कि सीता माता ने अपने वनवास के कुछ दिन इस जंगल में महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में बिताए थे। जिस कृष्ण से भी इस वन का नाम माता सीता के नाम पर रखा गया है। आज भी इस आश्रम में बहुत से औषधीय पौधे हैं।
रामायणकाल के मिलते है प्रमाण
यहां सीतामाता का एकमात्र प्रसिद्ध मन्दिर स्थित है। जिसकी खास बात यह यह है कि यह मंदिर वन के हृदय स्थल पर बना हुआ है। इसके अलावा एक चट्टान लखिया भाटा है। जिस पर प्राचीन निशान अंकित हैं। साथ ही यहां भागी बावड़ी धार्मिक स्थल है। सीता माता अभ्यारण्य में ही हनुमान जी का भी एक मंदिर स्थित है। जिसकी मान्यता के तौर पर माना जाता है कि इसी स्थल पर राम पुत्र लव, कुश ने हनुमान जी को रस्सी से बांधा था।
वन में दिखती हैं उड़ने वाली गिलहरियां
प्रकृति का सबसे अनोखा रूप इस वन में देखने को मिलता है, जहां पैंथर भालू सहित कई जानवर देखने को मिलते हैं। मगर सबसे अद्भुत दृश्य उड़ने वाली गिलहरी के रूप में दिखता है। जब वह एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर उड़कर आसानी से जाती हैं। इस वन में उड़ने वाली गिलहरियों की संख्या बहुत अधिक है।
प्रकृति का एक अद्भुत नजारा
सीतामाता अभ्यारण्य राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में स्थित घूमने के लिए ख़ूबसूरत जगहों में से एक है। जिसमें प्रकृति अपनी सुंदर छठा बिखेरती है और जहां हमें हमारे धर्म से जुड़ने का भी मौका मिलता है। यह अभ्यारण्य सुबह 8 बजे से शाम 5 बजे तक खुला होता है।
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