Kachwaha Dynasty: सूर्यवंश के कछवाहा राजवंश की शुरूआत राजस्थान के दौसा जिले से की गई थी। कछवाहा वंश को भगवान श्री राम के पुत्र कुश की संतान माना जाता हैं। 11वीं शताब्दी में सोढ़देव की मृत्यु के बाद दूल्हेराह ने वंश की कमान संभाली थी। राजस्थान में सबसे पहले दौसा जिले को इसकी राजधानी बनाया गया था।
इसके बाद जमवारामगढ़, आमेर और बाद में जयपुर को कछवाहा वंश की राजधानी घोषित किया गया था। जानकारी के लिए बता दें कि दूल्हे राय के पिता साढ़ेदेव मध्यप्रदेश के ग्वालियर के शासक हुआ करते थे और दूल्हे राय का ससुराल दौसा में था। इसी कारण से आधे जिले पर चौहान वंश का शासन था और आधे पर बड़गूजरों का।
दामा दूल्हे राय को सौंप दिया गया था राज्य
बता दें कि दौसा जिले के चौहानों ने अपने दामाद को ग्वालियर से बुलाकर अपना पूरा राज्य दे दिया था। इसके बाद भांकरी के युद्ध में बड़गूजरों को परास्त कर पूरा राज्य अपने नाम कर लिया था और इसके बाद से ही जिले में कछवाहा राजवंश की शुरूआत हुई। मान्यता है कि इस लड़ाई में दूल्हे राय बेहोश हो गए थे, जिसके बाद जमवाय माता के आर्शीर्वाद से ही वे युद्ध को जीत पाए। तभी से जमवाय माता को कछवाहा राजवंश की कुलदेवी के रूप में पूजा जाता है।
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सूरजमल भौमिया मंदिर में की जाती है पूजा
दूल्हेराय के वंशज सूरजमल भौमियाजी का भव्य मंदिर दौसा किले के नीचे स्थित है। आज भी स्थानीय लोगों द्वारा मंदिर में दौसा के राजा सूरजमल भौमियाजी की पूजा अर्चना की जाती हैं। इसके साथ ही यहां महाराणा सांगा का एक चबूतरा भी बनाया गया है, माना जाता है कि खानवा के युद्ध के दौरान महाराणा सांगा को बेहोशी की हालत में यहां लेकर आए थे। उनकी मृत्यु के बाद तभी से यहां इस चबूतरे का निर्माण किया गया था।