Rajasthan Scheme: राजस्थान स्टेट हेल्थ एश्योरेंस एजेंसी यानी राशा ने मुख्यमंत्री आयुष्मान आरोग्य योजना (मां) को लेकर बड़ा आदेश जारी किया है। इसके बाद से गंभीर नवजातों के लिए बड़ा संकट खड़ा हो गया है। इस नियम के अनुसार यदि कोई नवजात गंभीर हालात में वेंटिलेटर पर है और उसे इनोटरोप्स दिए जा रहे हैं या फिर वह कम वजनी है तो उसका इलाज तभी किया जाएगा जब उसे डीएम नियोनेटोलॉजिस्ट देख रहे हों।
प्रदेश में मौजूद हैं केवल 12 विशेषज्ञ
चौंकाने वाली बात यह है कि यह नियम तब जारी किया जा रहा है जब राज्य में डीएम नियोनेटोलॉजिस्ट की संख्या कुल 12 है। वो भी जयपुर, जोधपुर व कोटा जैसे बड़े शहरों तक सीमित हैं। ऐसे में छोटे शङरों व ग्रामीण इलाकों के नवजात का योजना के तहत मुफ्त इलाज करवाने के लिए परिजन को बड़े शहरों की तरफ दौड़ लगानी पड़ेगी या पैसे खर्च कर इलाज करवाना पड़ेगा। वहीं बड़े शहरों तक जाने में नवजात की जान को भी खतरा हो सकता है।
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आईएपी ने शुरू किया नियम का विरोध
आदेश जारी होने के बाद इंडियन एकेडमी ऑफ फिजिशियन राजस्थान शाखा, निजी अस्पताल संगठन व बाल रोग विशेषज्ञों ने इसका विरोध शुरू कर दिया है। उनका कहना है कि डीएम की अनिवार्यता जैसी नीति यूपी, मध्य प्रदेश, गुजरात, हरियाणा आदि राज्यों में भी विचाराधीन रही, लेकिन वहां की सरकारों द्वारा व्यावहारिक कठिनाइयों को देखते हुए इसे लागू नहीं किया गया। राज्य के सबसे बड़े शिशु रोग उपचार अस्पताल जयपुर के जेकेलोन में भी डीएम नियोनेटोलॉजिस्ट नियुक्त नहीं है।
25000 नवजातों को झेलना पड़ेगा इसका प्रभाव
संगठनों का कहना है कि यदि यह कानून राजस्थान में लागू होता है तो आगामी एक साल में लगभग 25000 नवजातों को इसका प्रभाव झेलना पड़ेगा। नेशनल इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स डॉ. एस.पी.सेठी ने कहा कि इस नियम का नुकसान ना तो डॉक्टरों, अस्पतालों को उठाना पड़ेगा बल्कि इसका प्रतिकूल प्रभाव प्रदेश के गरीब और ग्रामीण व जरूरतमंद परिवारों को उठाना पड़ेगा। डीएम नियोनेटोलॉजिस्ट की प्राथमिकता तो हो, लेकिन अनुभवी एमडी, एमसीएच बाल रोग विशेषज्ञों को भी इलाज की अनुमति दी जानी चाहिए।

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