Caste Census Rajasthan: केंद्र की मोदी सरकार ने अपने कैबिनेट बैठक में जातिगत जनगणना कराने का ऐलान किया है। जिसके बाद पूरे देश में इसी की चर्चा हो रही है। ऐसे में राजस्थान की बात करें तो यहां जातिगत जनगणना कोई साधारण प्रक्रिया नहीं है। यह इससे सत्ता के समीकरणों को जड़ से हिला सकती है। आइए जानते हैं राजस्थान में जातीय जनगणना का असल क्या होगा?
आरक्षण की हो सकती है लड़ाई
प्रदेश के जाट, माली, गुर्जर, मीणा और विश्नोई जैसे समुदाय जो कि लंबे समय से खुद को निर्णायक शक्ति मानते हैं। अब जनसंख्या के आंकड़ों के साथ अधिकार की मांग करेंगे। जाट समुदाय खुद को हाशिए पर मानते हुए राजनीतिक प्रतिनिधित्व और आरक्षण में हिस्सेदारी बढ़ाने की मांग कर सकता है।
दलित समुदाय की लड़ाई होगी तेज
जातिगत डाटा के आधार पर गुर्जर आंदोलन सशक्त हो सकता है। भीलवाड़ा, डूंगरपुर, बांसवाड़ा जैसे क्षेत्रों में आदिवासी मुद्दे उभर सकते हैं और दलित समुदाय सामाजिक न्याय की लड़ाई में और मुखर हो सकता है। इसके पहले भी कई बार आरक्षण को लेकर जाट जैसे समाज आंदोलन कर चुके हैं। यही नहीं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सीकर की रैली में ही जाटों को आरक्षण ने बात भी कही थी।
जनगणना सियासत की बनेगी नई जमीन
राजनीतिक दलों के लिए ये वोट बैंक की यह नई लड़ाई साबित हो सकती है। राजस्थान में पहले ही आरक्षण की सीमा 50% के पार जा चुकी है। लेकिन अगर जातिगत जनगणना तो कुछ जातियों की संख्या अभी से ज्यादा निकल सकती है। जिससे ईडब्ल्यूएस आरक्षण, ओबीसी उपवर्गीकरण और संवैधानिक संशोधन की मांग भी उठ सकती है। कुल मिलाकर राजस्थान में जातिगत जनगणना महज जनसंख्या का दस्तावेज नहीं। यह सत्ता, आरक्षण, योजनाओं और प्रतिनिधित्व की लड़ाई का आधार बनने जा रहा है। राजस्थान जैसे राज्य में जहां जातीय चेतना हमेशा सतह के ठीक नीचे मौजूद रही है। यह जनगणना सियासत की नई जमीन तैयार कर सकती है।