Traditional Grain Storage : राजस्थान के बाड़मेर के बॉर्डर पर स्थित लापला गांव में आज भी देसी तरीके से अनाज व दूध को सुरक्षित रखा जाता है। पारंपरिक रूप से मिट्टी, गोबर और नीम से बने भंडार में अनाज को पूरी तरह फ्रेश रखा जाता है। यहां के लोग राख, नीम व कपूर के इस्तेमाल से अनाज को बहुत लंबे समय तक सुरक्षित रखते हैं। यहां के बुजुर्गो ने अपनी इस नायाब परंपरा को संजो कर रक्खा है तो उनकी आगामी पीढ़ी उसे आगे बढ़ाने के लिए कृतसंकल्प है। पर कहीं न कहीं आधुनिकता उसे मात देने पर तुली दिखती है। लापला गांव की ही गीता देवी का ‘कोठार’ इस परंपरा का बेमिसाल नमूना है। उनके इस 50 वर्ष पुराने कोठार में आज भी अनाज उसी तरह सुरक्षित रहता है जैसे शुरुआती दिनों में हुआ करता था। मिट्टी और गोबर से बने इस कोठार में प्रकृति के साथ संयम पूर्वक किए गए तालमेल का परिणाम देखने को मिलता है। कम संसाधनों के साथ भी समायोजन करने का ये बहुत सुंदर उदाहरण है।
प्रकृति से विज्ञान तक का सफर
गांव में बनाया गया ये कोठार या किणारा मात्र अनाज रखने का भंडार नहीं बल्कि एक जीती जागती वैज्ञानिक पद्धति है। बकौल गीता देवी गोबर मिट्टी से बने होने के कारण इसके बाहर व अंदर के तापमान में संतुलन बना रहता है। इसकी ऊपरी सतह पर नीम की पत्तियां व सूखी घास डाल दिया जाता है जिससे कीड़े मकोड़े नहीं लगते। इस भंडारे में ग्वार, बाजरा, मूंग, मोठ, तिल व जीरा आदि अनाज बहुत लंबे समय तक सुरक्षित रखे जा सकते हैं।
राख व कपूर सुरक्षित रखते हैं अनाज
गीता देवी बताती हैं कि राख व कपूर नमी को सोख लेते हैं जिससे अनाज काफी समय तक खराब नहीं होता और न ही उसमें घुन लगता है। इसमें रखे गए ग्वार या जीरा को दो तीन साल तक फ्रेश रखा जा सकता है।
आने वाले समय के लिए सकारात्मक संदेश
लापला गांव के भंडारण की यह परंपरा पारंपरिक देसी ज्ञान को दृढ़ता से सत्यापित करती है। इस परंपरा से हमें ये संदेश मिलता है कि अपनी जड़ों से जुड़े रहकर भी हम पर्यावरण को बचा सकते हैं तथा कम संसाधनों में भी अपनी जरूरतों को पूरा कर सकते हैं।
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