Bhavgarh Bandhya Donkey Fair : मेला तो आपने कई तरह का देखा होगा लेकिन जयपुर में एक अनोखा मेला लगता है। जयपुर जिले के भावगढ़ बंध्या गांव में गधों का एक अनोखा मेला लगता है। दरअसल ये देश का इकलौता मेला है जहां जहां गधे घोड़े और खच्चर पूरी सज धज के साथ बिकने के लिए आते हैं। इसी तरह जयपुर के लूनियावास में लोकल व्यापारियों के लिए गधे मेले का आयोजन होता है।
खलकानी माता की कृपा से स्वस्थ रहते हैं पशु
खलकानी माता के मंदिर के पास आयोजित इस गधों के मेले को गर्दभ मेला भी कहा जाता है। वहां के लोगों की मान्यता है कि मेले में खरीदे बेचे गए पशुओं पर खलकानी माता की विशेष कृपा होती है जिसकी वजह से ये गधे स्वस्थ, मेहनती और ज्यादा काम करने वाले होते हैं। अतः इस मेले में धार्मिक आस्था और व्यापार का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।
देश का इकलौता गधा मेला
गर्दभ मेला भारत का एकमात्र व विशिष्ट मेला है जिसमें प्रमुख रूप से सिर्फ गधों की खरीद फरोख्त होती है। देश के लगभग हर राज्य से व्यापारी अपने गधे व खच्चर लेकर पहुंचते हैं। गधों की नस्ल, उम्र,सेहत और ताकत की पूरी छानबीन करने के बाद उनका दाम लगाया जाता है।
कुछ हजार से लाख रुपए तक की होती है कीमत
अभी भी सामान ढोने के लिए लिए विशेष रूप से निर्माण कार्य वाली जगहों पर गधों का भरपूर इस्तेमाल किया जाता है। ईंट के भट्टों, सामान ढोने व खेती के काम में गधों का भरपूर इस्तेमाल किया जाता है। इस अनोखे मेले के आयोजन से पशुपालकों को अपने पशुओं का अच्छा पैसा मिलता है साथ ही खरीदार अपनी जरूरत के हिसाब से पशु चुनकर खरीद सकता है। यहां इन पशुओं की कीमत कुछ हजार से लाख रुपए तक तय हो जाती है।
सामाजिक मेल मिलाप का साधन
उपरोक्त मेले का उद्देश्य सिर्फ पशुओं का व्यापार नहीं है बल्कि यहां नृत्य, संगीत व खाने पीने की स्वादिष्ट चीजों का भी लोग आनंद लेते हैं। शहर और गांव दोनों ही जगहों से लोग यहां इकट्ठे होते हैं जहां लोग आपस में मिलते-जुलते हैं और इस मेलजोल से उनका सामाजिक दायरा बढ़ता है।
राज्य की सांस्कृतिक धरोहर व ग्रामीण जीवन की झलक
जयपुर में आयोजित ये गधा मेला राजस्थान की अनूठी परंपराओं का अहम हिस्सा है जिसमें ग्रामीण अर्थतंत्र और पशुपालन संस्कृति की झलक देखने को मिलती है। ये विशेष परंपरा हमें ये संदेश देती है कि जमीन से जुड़े लोगों का जीवन अभी भी अपनी संस्कृति और सभ्यता को लेकर चलने वाला सबसे मजबूत जरिया है।
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