Bayan Mata Temple: मेवाड़ के महाराणा की कुलदेवी का ऐतिहासिक मंदिर चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर स्थित है। नवरात्रि के समय गोहिल वंशीय क्षत्रियों के साथ ही देश विदेश से लोग भी माता के दर्शन व पूजा करने पहुंचते हैं। इस प्राचीन मंदिर का निर्माण मेवाड़ के महाराणा बप्पारावल ने सातवीं सदि में करवाया था। मंदिर में उन्होंने बायण माता की मूर्ति की स्थापना कराई थी, इस प्रतिमा उनके विवाह के बाद दमन दीव से लाई गई थी।
मंदिर में मौजूद है दो मूर्तियां
मंदिर में मां बायण के साथ साथ अन्नपूर्णा माता व राघव देवजी की दो मूर्तियां मौजूद हैं। माता की मूर्ति खंडित होने पर महाराणा सज्जन सिंह ने मंदिर में नई मूर्ति की स्थापना कराई थी। इसके बाद से ही यहां क्षत्रिय वंश खासकर गोहिल वंशी राजपूत समाज के लोग नवरात्रि के समय कुलदेवी की विशेष पूजा करते हैं।
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मंदिर से जुड़ा इतिहास
मौर्यकालीन में बने इन दोनों मंदिर का निर्माण छठी शताब्दी में बप्पा रावल ने कराया था। यह मंदिर मेवाड़ राजवंश की आस्था का यह प्रमुख केंद्र माना जाता है। लगभग सात सौ साल पहले मंदिर परिसर में राणा हमीर ने मां बिरवड़ी की मूर्ति स्थापना करवाई थी। विक्रम संवत 1360 में दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण कर चित्तौड़गढ़ को अपने नाम कर लिया था। राजसमंद ने नाथद्वारा के पास स्थित सिसोदा गांव में गोहिल वंश की एक छोटी सी शाखा को देखकर हमीर ने राजवंश को जितने की इच्छा जताई थी।
माता ने दिया था आदेश
सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण के बाद राणा अपने परिवार के साथ द्वारिकापुरी जा रहे थे। रात्रि विश्राम के लिए उन्होंने गुजरात के कच्छ में पड़ाव डाला हुआ था। यहां जब उन्होंने चखड़ा जी चारण की पुत्री बिरवड़ी के चमत्कार के बारे में सुना तो उनके दर्शन के लिए मंदिर पहुंचे। बताया जाता है कि यहां माता ने उन्हें दुबारा आक्रमण करने का आदेश दिया था, जिसके बाद वे 500 अश्व के साथ चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण करने चले गए।