Unique Temple: राजधानी जयपुर में करीब 180 साल पहले माणक चौक चौपड़ पर सिरह ड्योढ़ी बाजार में स्थापित देश का एकमात्र मंदिर श्री रामचंद्रजी है, हालांकि यहां भगवान श्री कृष्ण के चित्र देखे जा सकते हैं। इस मंदिर को पूर्व महाराजा सवाई जगतसिंह की महारानी चंद्रावती ने देवस्थान विभाग के अधीन राजकीय प्रत्यक्ष प्रभार से बनाया था।
इस मंदिर को पूर्व जयपुर महाराजा सवाई जगत सिंह की महारानी चंद्रावती ने बनाया था। जिसका रामचंद्रावती रखा गया। महाराजा रामसिंह और चन्द्रवती मंदिर बनाने वाली चन्द्रावती के नाम से इसमें राम शब्द लिया गया। लेकिन मंदिर रामचन्द्रवती जी से बदलकर अभ्रंश मंदिर रामचन्द्र जी हो गया। लेकिन मंदिर में कृष्ण और राधा की मूर्ति नहीं है।
मंदिर में सबसे पहले भगवान श्री कृष्ण का विग्रह
मंदिर का निर्माण महारानी चन्द्रावती ने किया था। पहले मंदिर को राम चन्द्रावती मंदिर कहा गया, क्योंकि इसमें महाराजा रामसिंह के नाम और चन्द्रवती रानी का नाम शामिल था। इसके बाद मंदिर का नामकरण हुआ. कुछ वर्षों बाद इसका नाम बदलकर श्री रामचन्द्र मंदिर हो गया। महारानी भगवान कृष्ण की भक्त थीं, इसलिए मंदिर में सबसे पहले भगवान कृष्ण का बड़ा विग्रह बनाया गया था। लेकिन मूर्ति स्थापना और प्राण प्रतिष्ठा के समय महारानी चंद्रावती का स्वर्गवास हो गया था, इसलिए मूल विग्रह की स्थापना अशुभ मानी गई. इसलिए बाद में निज सेवा की छोटी धातु की मूर्तियों को मंदिर में रखा गया, जो आज भी वहाँ हैं।
जानें मंदिर का इतिहास
इतिहासकार सिया शरण लश्करी ने बताया कि भगवान श्री रामचंद्र जी का बड़ा विग्रह मंदिर में स्थापना के लिए बनाया गया था। लेकिन मूर्ति स्थापना और प्राण प्रतिष्ठा के समय छोटी-छोटी धातु की मूर्तियों को मंदिर में स्थापित किया गया। वर्तमान में ये मूर्तियां मंदिर में हैं। मंदिर का भव्य भवन एक एकड़ में फैला हुआ है। घर में नौ चौक हैं। भवन का अग्रभाग जाली और झरोखों से बना है, जो जयपुर की स्थापत्य कला का बेहतरीन उदाहरण है। मंदिर का गर्भगृह और सिंहद्वार सुंदर हैं।
चित्र और कला में दिखाई देने वाली संस्कृति
मंदिर के खंभों पर अद्भुत नक्काशी की गई है। साथ ही छत और दीवारों पर की गई भित्ति देखते ही बनती हैं। मंदिर के जगमोहन में रामचरितमानस के प्रसंगों के साथ जयपुर के दर्शनीय स्थानों का चित्रण भी है। यहाँ भगवान विष्णु के 24 अवतारों का भी सुंदर चित्रण है।
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