Tareesara Village: पश्चिमी राजस्थान की तपती गर्मी में सूरज लोगों को झुलस रहा है। इतनी कठिन परिस्थितियों में तारीसरा गांव पानी को बूंद बूंद मोहताज है। इस गांव की एक सीमा पाकिस्तान से लगी है तो दूसरी सीमा गुजरात से। यहां के लोगों का सबसे बड़ा संकट गर्मी नहीं बल्कि पानी है।
पानी की वजह से वीरान हुआ यह गांव
यहां पर पानी कितनी कमी है की रोज नहाने तक को भी नहीं मिलता। यहां पर पानी का एकमात्र एक कुआं है। इस कुएं में भी खारा पानी आता है और इस पानी को भी बूंद बूंद करके संरक्षित करना पड़ता है। एक वक्त पहले तक इस गांव में 100 से अधिक परिवार रहते थे। लेकिन पानी ना होने की वजह से लोगों ने गुजरात की तरफ चले गए। अब इस गांव में मात्र 15-20 परिवार ही बचे हैं। आधे अधूरे घर और वीरान दुकानें यहां के वीरान पने को बयां करती है। हालांकि इन घरों के बाहर आज भी मूर्ति स्थापित है लेकिन मूर्तियों के आगे दीया जलाने को कोई नहीं है।
खारे पानी पर हो रहा जीवन यापन
यहां के निवासी अपना जीवन यापन खारे पानी पर ही कर रहे हैं। यहां के लोगों ने कभी मीठा पानी पिया ही नहीं है। यहां पर लोग कभी-कभी पानी के टैंकर मंगा लेते हैं लेकिन वह काफी ज्यादा महंगे होते हैं। इन टैंकर की कीमत ₹2000 प्रति टैंकर होती है जो केवल 10 दिनों तक चलता है। यहां के लोग मजदूरी करते हैं और मुश्किल से 10000 से ₹12000 प्रति माह तक कमा पाते हैं। ऐसे में पानी के टैंकरों को मंगाना उनकी आय पर काफी असर डालता है। यहां पर खेती करना भी लगभग असंभव ही है। पानी के लिए लोग बारिश पर निर्भर होते हैं लेकिन उस पानी में भी मात्र पशुओं के चारे की ही व्यवस्था हो पाती है।
ना स्कूल ना सड़क ना दुल्हन
यहां पर ना तो उचित सड़कें हैं, ना ही स्कूल और यहां तक की लड़कों की शादी करने में भी कठिनाइयां आती है। लोगों का कहना है कि कौन अपनी बेटियों की शादी यहां पर करेगा जहां पीने को पानी तक नहीं है। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि शिक्षा और बच्चों के लिए बेहतर भविष्य का सपना भी यहां पर सूखे में पड़ा है।
तारीसरा गांव की कहानी महज पानी की कहानी नहीं है बल्कि यह एक उपेक्षा, पलायन और निराशा की कहानी है। लोग सरकार से आग्रह करते हैं कि यहां पर बुनियादी ढांचे, नहर संपर्क और दीर्घकालिक जल सुरक्षा समाधानों की शुरुआत करनी चाहिए।