Rajasthan History: राजस्थान के पाली जिले का एक छोटा सा गांव आउवा आज भी 1857 की क्रांति का गवाह बना हुआ है। देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत इसी गांव से हुई थी। इस गांव की जमीन कई महानायकों के रक्त से लाल हुई है। अंग्रेजों द्वारा गांव पर कई तोपों के सैकड़ों गोले छोड़े गए, लेकिन यहां के वीर जवानों ने कभी भी अंग्रेजों के सामने हार नहीं मानी। आजादी की जंग में आऊवा गांव का नाम बड़ी शान से लिया जाता है।
यहीं से शुरू हुआ था पहला स्वतंत्रता संग्राम
आऊवा गांव 1857 के विरोध के लिए आज भी इतिहास की किताबों में पढ़ा जाता है। अंग्रेजों की गुलामी के विरोध में किए गए पहले स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत यही से हुई थी। बता दें कि जब छावनी के ऐरनपुरा गांव से पहला सैनिक विद्रोह शुरू हुआ था, तब बागी सैनिकों ने इसमें हिस्सा लेने के लिए आऊवा गांव होते हुए दिल्ली की ओर कूच किया था। इस बात की जानकारी जैसे ही आऊवा ठाकुर कुशाल सिंह को मिली उन्होंने बागी सैनिकों को अपने यहां ही छुपा दिया था। इसके विरोध में अंग्रेजों ने आऊवा गांव पर धावा बोलकर सैकड़ों गोले छोड़ दिए थे।
अंग्रेज कैप्टन का कर दिया था सिर कलम
ठाकुर चम्पावत की ओर से लोगों के मन में आजादी की चिंगारी जगा दी गई थी। ठाकुर कुशाल सिंह ने जोधपुर पॉलिटिकल एजेंट अंग्रेज कैप्टन मोंक मेसन का सिर धर से अलग कर आऊवा किले की प्राचीर पर लटका दिया था। उनकी इस बहादुरी का जिक्र आज भी लोकगीतों में किया जाता है।
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पूरे गांव को कर दिया था ध्वस्त
इस घटना के बाद ब्रिटिश सेना ने बदला लेने के लिए आऊवा पर चढ़ाई की और एक के बाद एक बंदूकें व तोपों से पूरे गांव को ध्वस्त कर दिया था। इतना ही नहीं प्राचीन सुगाली माता की मूर्ति को भी यहां से उखाड़कर ले गए थे। इस युद्ध में ठाकुर कुशाल सिंह चम्पावत और उनके साथियों ने ब्रिटिश सेना के विरोध में लड़कर अपने साहस का परिचय दिया था।
क्रांतिकारियों के रक्त से लाल हो गया था गांव
इस युद्ध में कुल 24 क्रांतिकारियों को अपनी जान गवानी पड़ी थी। वहीं ब्रिटिश सेना द्वारा 120 क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया था। इनके खिलाफ बगावत का मुकदमा दर्ज कर इन्हें जेल भेजा गया था। बंदूकें व तोपों से 24 स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राण देश की आजादी के लिए निछावर कर दिए थे।