Palace On Wheels: राजस्थान की एक ऐसी ट्रेन जो राजा-महाराजाओं के महल जैसी है। वह है पैलेस ऑन व्हील्स। यह एक चलता-फिरता महल है, जिसके मालिक भरतपुर के भगत सिंह हैं। इस ट्रेन के बारे में अधिक जानने के लिए राजस्थान वन की रिपोर्टर मोनालिका मेड़तवाल ने भगत सिंह से खास बातचीत की। रिपोर्टर ने उनसे पूछा कि आपने इस चलती-फिरती ट्रेन को महल में कैसे तब्दील किया? इस अनूठे विचार की प्रेरणा कहां से मिली?

पैलेस ऑन व्हील्स की शुरुआत
भगत सिंह ने बताया, "मैं किस्मत में विश्वास नहीं करता, बल्कि मेहनत को महत्व देता हूं। जब मैंने लोहागढ़ फोर्ट रिसॉर्ट बनाया था, तब मुझे नहीं पता था कि मैं इतना रचनात्मक हूं। उस समय मैंने मजबूरी में इंटीरियर डिजाइनर और आर्किटेक्ट को पैसे दिए थे, लेकिन मैंने खुद ज्यादा दिमाग नहीं लगाया। जब रिसॉर्ट हिट हुआ, तो मुझे लगा कि मैं कुछ अनोखा और रचनात्मक कर सकता हूं। तभी इस ट्रेन के नवीनीकरण का विचार आया। जैसा इसका नाम है-पैलेस ऑन व्हील्स, यानी पहियों पर एक महल। मैंने बस इस विचार को साकार करने का फैसला किया।"

पैलेस ऑन व्हील्स की बनावट
भगत सिंह ने बताया कि उन्होंने प्रेरणा के लिए आमेर के शीश महल का दौरा किया। उन्होंने कहा, "मैंने इस रेस्तरां को आमेर के शीश महल की तर्ज पर डिजाइन किया। इसके फर्श को बदला गया और दूसरा रेस्तरां स्वर्ण महल की शैली में बनाया गया। पिछले 42 वर्षों से यह ट्रेन चल रही थी और इसे सरकारी स्तर पर कई ठेकेदारों ने एकसमान बनाया था। इसमें कोई अनूठापन नहीं था। लेकिन हमारा लक्ष्य अंतरराष्ट्रीय स्तर की लग्जरी ट्रेनों से मुकाबला करना था। इसलिए, हमने कुछ अलग और असाधारण करने की ठानी। इस भावना ने इस ट्रेन को इतना खूबसूरत बनाया।"

भरतपुर की प्रतिभाएं
रिपोर्टर ने पूछा कि भरतपुर की गलियां बहुत अच्छी स्थिति में नहीं हैं, फिर भी आपने इतनी शानदार ट्रेन बनाई। इस पर भगत सिंह ने जवाब दिया, "भरतपुर के बारे में ऐसा न कहें। यहां कई अद्भुत प्रतिभाएं हैं। भले ही भरतपुर अंतरराष्ट्रीय स्तर का शहर न हो, लेकिन इस धरती ने कई वीर और प्रतिभाशाली लोग दिए हैं। मैं कोई नया व्यक्ति नहीं हूं जो कुछ अलग कर रहा है। भरतपुर अपने आप में एक विख्यात स्थान है।"

पैलेस ऑन व्हील्स की खासियत
उन्होंने ट्रेन की विशेषताओं के बारे में बताया, "यह 8 दिन का टूर है, जिसमें सात यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल और आगरा का ताजमहल शामिल हैं। ट्रेन दिल्ली से शुरू होती है और जयपुर, सवाई माधोपुर, चित्तौड़गढ़, उदयपुर, जैसलमेर, जोधपुर, भरतपुर और आगरा का दौरा करती है। रात में ट्रेन चलती है, और दिन में मेहमानों को दर्शनीय स्थलों पर ले जाया जाता है। सारी व्यवस्थाएं, जैसे सुरक्षा, एसी, वॉल्वो और लग्जरी कोच, मेरे जिम्मे हैं।"

किराया
भगत सिंह ने बताया कि सबसे निचली श्रेणी का कमरा 9 से 10 लाख रुपये का है, जो 8 दिन के लिए है। उन्होंने कहा, "यह किराया ऐसा है कि अगर किसी आम व्यक्ति को लॉटरी लग जाए, तो वह भी इस सफर का आनंद ले सकता है। मैं दर्शकों से कहना चाहूंगा कि इस ट्रेन का सफर जीवन भर के लिए यादगार बन जाता है। मेहमान जब ट्रेन से उतरते हैं, तो उनकी आंखों में आंसू होते हैं, क्योंकि हम उनकी इतनी अच्छी देखभाल करते हैं।"

अलग-अलग कोच
उन्होंने बताया, "राजस्थान में कभी 20-25 बड़े रजवाड़े थे, जिनकी अपनी कला और संस्कृति थी। इस ट्रेन के कोचों को राजा-महाराजाओं की शैली में बनाया गया था, लेकिन समय के साथ सब एकसमान हो गए थे। मैंने जोधपुर, भरतपुर आदि की कला और संस्कृति के अनुसार कोचों का नवीनीकरण किया। मैंने आमेर के शीश महल की शैली को अपनाया, क्योंकि यह मुझे बहुत पसंद है। नवीनीकरण के लिए मैंने किसी इंटीरियर डिजाइनर या आर्किटेक्ट की मदद नहीं ली; यह मेरा अपना विचार था।"

स्वादिष्ट भोजन
उन्होंने कहा, "8 दिन तक मेहमानों को खुश और स्वस्थ रखना होता है। हमारी रसोई टीम, जिसमें शेफ राजेंद्र हैं, विभिन्न देशों के व्यंजन बनाती है। हम मेहमानों के देश के अनुसार भोजन परोसते हैं।"

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अतिथि देवो भव:
भगत सिंह ने कहा, "पहले दिन मेहमानों को ब्रीफिंग में हम दो श्लोक सुनाते हैं: वसुदेव कुटुंबकम (पूरी दुनिया एक परिवार है) और अतिथि देवो भव: (अतिथि भगवान के समान है)। हम इन भावनाओं को जीते हैं। हमारा स्टाफ मेहमानों की सेवा पूरी निष्ठा से करता है, क्योंकि हम मानते हैं कि अतिथि की सेवा से भगवान भी प्रसन्न होते हैं।"