Kotra fort: राजस्थान के बाड़मेर जिले से करीब 53 किलोमीटर दूर स्थित कोटड़ा गांव में रेगिस्तान में स्थित एक छोटी सी पहाड़ी पर ऐतिहासिक किला बना हुआ है। यह किला मारवाड़ के प्राचीन किलो में से एक है। कोटड़ा का यह किला प्रमुख किलो में से एक है। बाड़मेर में जहां किराडी, खेड़ जूना गोहणा भाखर जैसी कई पुरातत्व स्थल मौजूद है, इन्हीं में से एक छोटी सी पहाड़ी पर स्थित है यह कोटड़ा किला।
चारों तरफ बनी है आठ बुर्जे
इस किले की खास बात यह है कि इसके चारों तरफ 8 बुर्जे बनी हुई है, जिनके बीच में ऊंची दीवारो के मध्य में कई महलों व मकानों का निर्माण किया गया है। बताया जाता है कि इस किले को बनाने की प्रेरणा जैसलमेर के सोनार किले से मिली थी। इस किले को भी सोनार किले की प्रकार चट्टानों को काट कर बनाया गया था।
किले का इतिहास
एक शिलालेख के अनुसार विक्रम संवत 1230 से 1239 के बीच आसलदेव द्वारा इस किले का निर्माण कराया गया था। किले की मरम्मत के साथ इस किले के विभिन्न भागों का निर्माण राज्य के कई भासको और साहूकारो ने किया था। इस कलात्मक झरोखे को स्थानीय भाषा में मेडी के नाम से भी जाना जाता है। प्राचीन काल से यह किला ऐतिहासिक, सामाजिक धार्मिक और राजनीतिक घटनाओं का साक्षी रहा है।
ये भी पढ़ें:- Mukhyamantri Vridhjan Samman Pension Yojana: भजनलाल सरकार ने बुजुर्गों को दिया बड़ा तोहफा, वृद्धा पेंशन हुई की बढ़ोतरी
दुर्ग पर हो चुके हैं कई आक्रमण
इस किले ने कई आक्रमण झेले हैं। 14वीं शताब्दी के दौरान राठौड़ रणधरी ने इस किले पर अपना अधिकार किया था। इतिहासकारों के मुताबिक कोटड़े के चाचा और मेरा वीर राठौड़ो ने संवत 1490 में महाराणा मोकलजी को मार कर इस किले को अपने कबजे में ले लिया था। साल 1588 में यह किला मारवाड़ के राजा राव मालदेव के अधीन रहा था।
काट दिए गए थे कारीगरों के हाथ
इस किले का बारे में बताया जाता है कि किले का निर्माण करने वाले शिल्पकार ने इसको बनाने में अपना दाएं हाथ इस्तेमाल किया था। वहीं उक्त शिल्पकार ने बांया हाथ से इसे बनाया था। जिसके बाद जैसलमेर के महाराजा ने शिल्पकार के हाथ काट दिए थे। जिससे कोई और ऐसी इमारत ना बना सके।