Gavari dance:-राजस्थान के प्रमुख लोक नत्यों में से एक है मेवाड़ का गवरी नृत्य, जिसे स्थानीय भील समाज के लोगों द्वारा किया जाता है। राजस्थान का यह डांस करीब सवा महीने तक चलता है, इस लोक कला ने भील समाज की विरासत को सदियों से जीवित रखा हुआ है। इसमें प्रतिभागियों को पूरे कार्यक्रम में ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ता है। इस दौरान वे लोग अपने घर में भी नहीं रहते है। इसके साथ ही महोत्सव के आखिरी दिन गलावान व वालावन की रस्म निभाई जाती है, जिसमें सभी प्रतिभागियों की अग्नि परीक्षा ली जाती है।
गलावान व वालावन की रस्म
लोक संस्कृति विद चंदन सिंह देवड़ा ने जानकारी दी कि इस अनूठे कार्यक्रम में माता पार्वती और भगवान शिव की कथा को नृत्य के माध्यम से दर्शाते हैं। अंतिम दिन रात को गलावन और वालावन की रस्म निभाई जाती है, जिसमें प्रतिभागियों की अग्नि परीक्षा ली जाती है। इस दौरान मिट्टी या कपड़े के हाथी की सवारी पूरे इलाके में निकाली जाती है, जिसमें ग्रामीणों के साथ आस-पास के क्षेत्र के लोग शामिल होते है। वालावन की परंपरा में गवरी को गांव के सरोवर में विसर्जित किया जाता है।
ये भी पढ़ें:- Type 2 Diabetes Diet: जयपुर में बच्चों की डायबिटीज के केस में हुई तीन गुना वृद्धि, फॉलो करवाएं यह हेल्दी डाइट प्लान
कब शुरू होता है गवरी नृत्य?
रक्षाबंधन के दूसरे दिन से गवरी नृत्य की शुरुआत की जाती है। भील समाज के लोग अपने पूरे जीवन में एक बार इसे जरूर निभाते हैं। पूरे सवा महीने चलने वाले इस नृत्य में कई कड़े नियमों का पालन करना पड़ता है। इस दौरान समाज की महिलाएं पुरुषों का रूप धारण करती हैं और हरी सब्जियों का त्याग करती हैं। इसके साथ ही ब्रह्मचर्य का पालन करना अनिर्वाय होता है। यहां तक की वे अपने घर की दहलीज भी नहीं चढ़ते हैं।
समाज की विरासत को रखा जीवित
इस अनोखी परंपरा ने राजस्थान के भील समाज की सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखा हुआ है। साथ ही इस कार्यक्रम से धार्मिक आस्था भी कई सालों से मजबूत रही है।