Rajasthan National Family Health Survey Report: देश में हम महिला सशक्तिकरण की बात तो करते हैं, लेकिन अभी भी ज्यादातर परिवारों में बागडोर पुरुष ही संभालता है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की एक रिपोर्ट सामने आई है, जिसके अनुसार राजस्थान ऐसा राज्य है, जिसमें पुरुष प्रधान के आंकड़े सबसे अधिक पाए गए हैं। राजस्थान इस मामले में राष्ट्रीय औसत से बहुत पीछे है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार देश में 82.9 परिवारों के मुखिया पुरुष है, जबकि 17.1 फीसदी परिवारों की मुखिया महिलाएं हैं। 

देखें देश में महिला प्रधान परिवार के आंकड़े

देश के शहरी क्षेत्र में 17.1 फीसदी परिवारों का बागडोर महिलाएं संभालती है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में 17.6 फ़ीसदी परिवारों की बागडोर महिलाओं के हाथ में है। हम बात करें राजस्थान की तो राजस्थान में 1.15 करोड़ से भी अधिक यानी 90.72 परिवारों की बागडोर पुरुषों के हाथ में है, जबकि 9.28 फीसदी यानी 11.17 लाख परिवारों की बागडोर महिलाओं के हाथ में है। राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में 91.23 फीसदी परिवारों का बागडोर पुरुष के हाथ में है, जबकि 8.77 फीसदी परिवारों के बागडोर महिलाओं के हाथ में है।

राजस्थान में 89.21 फीसदी परिवार का बागडोर पुरुष के हाथ

राजस्थान के शहरी क्षेत्र में 89.21 फीसदी परिवारों का बागडोर पुरुष के हाथ में है, जबकि 10.79 फीसदी परिवारों का बागडोर महिलाओं के हाथ में है। ग्रामीण क्षेत्रों में 31 फीसदी और शहरी क्षेत्र में 20 फ़ीसदी से ज्यादा महिलाएं श्रम बल में भाग ले रही है। विशेषज्ञों ने जब इसका कारण जानना चाहा, तो उन्होंने बताया कि अगर शिक्षा दर बढ़ तो इस हालत में सुधार हो सकता है। राजस्थान का समाज हमेशा से पितृसत्तात्मक रहा है, जिसके कारण पुरुष को ही परिवार का मुखिया और कमाने वाला समझा जाता है।

विशेषज्ञों ने बताया क्या है इसका कारण

 दूसरी और ज्यादातर महिलाएं आर्थिक रूप से पुरुष पर निर्भर रहती है। अभी भी ग्रामीण और कुछ शहरी क्षेत्र में महिलाओं और पुरुषों की शिक्षा दर में जमीन और आसमान के अंतर है। इसलिए अगर इस स्थिति को बदलना है, तो लड़कियों के शिक्षा पर जोर देने की जरूरत है, ताकि आर्थिक सशक्तिकरण से महिलाएं मजबूत हो सके और यह हालात बदले जा सके।

विशेषज्ञों का इस मामले में मानना है कि समाज में महिलाओं के प्रति न सिर्फ सोच को बदलने की जरूरत है, बल्कि समान भागीदारी के रूप में भी देखने की जरूरत है। इसके लिए सरकारी योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वय में सुधार किया जा सकता है।