Panchmukhi Shiv Mandir Sikar: सीकर जिले में स्थित हर्ष पर्वत महज एक दर्शनीय स्थल नहीं है। यह एक आध्यात्मिक स्थल भी है। इसकी ऊंचाई लगभग 3100 फिट है। माउंट आबू के बाद इसे राजस्थान के सबसे दूसरे ऊंचे पर्वत के रूप में जाना जाता है। इस पर्वत की खास बात है यहां का प्राचीन हर्षनाथ मंदिर जिसे पंचमुखी शिव मंदिर भी कहा जाता है। इस मंदिर में भगवान शिव की दुर्लभ पंचमुखी मूर्ति स्थापित है । आईए जानते हैं इस मंदिर से जुड़े हुए कुछ रोचक तथ्य।
ऐतिहासिक महत्व
लोगों का कहना है कि चौहान राजा सिंह राज ने 1018 ईस्वी में हर्ष नगरी और हर्षनाथ मंदिर की स्थापना की थी। इस मंदिर की खास बात यह है कि इसमें भगवान शिव के दुर्लभ पंचमुखी मूर्ति है। ऐसा कहा जाता है कि यह मूर्ति पूरे राजस्थान में अपनी तरह की एकमात्र और देश की सबसे पुरानी मूर्तियों में से एक है। यह भी मानता है कि भगवान शिव का यह रूप भगवान विष्णु के मंत्रमुग्ध करने वाले किशोर रूप को देखने के लिए प्रकट हुआ था।
क्या है हर्ष नाम के पीछे की कथा
इस कथा की जड़े शिव पुराण से जुड़ी हुई है। ऐसा कहा जाता है की त्रिपुर नामक राक्षस ने इंद्र और अन्य देवताओं को स्वर्ग से निकाल दिया था। स्वर्ग से निकलने के बाद शरण और सहायता की तलाश में सभी देवता इसी पर्वत पर इकट्ठे हुए थे। यहां आने के बाद देवताओं ने भगवान शिव से मुक्ति के लिए प्रार्थना की थी। प्रार्थनाओं के जवाब में भगवान शिव कैलाश पर्वत से उतरकर इसी पहाड़ी पर युद्ध करने लगे और त्रिपुर को हरा दिया। जब इस जीत का उत्सव मनाया गया तो सभी देवताओं ने अपार खुशी व्यक्ति की। इसी वजह से इस पर्वत का नाम हर्ष पड़ा और भगवान शिव को हर्षनाथ के नाम से जाना जाने लगा।
क्या है यहां का सांस्कृतिक महत्व
आपको बता दें कि इस मंदिर में हर साल हजारों श्रद्धालु आते हैं। और उनके आने का एकमात्र कारण यहां पर स्थित पंचमुखी शिव मूर्ति है के दर्शन करना है। इसी के साथ यहां पर एक अनूठी परंपरा भी निभाई जाती है जिसका नाम है 'धोक'। दरअसल जाट समुदाय के पूनिया गोत्र के सदस्य इस अनुष्ठान को करते हैं। उनके द्वारा इस मंदिर में अपनी कुलदेवी की पूजा की जाती है।
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