Rajasthan Village: देश के कई इलाकों में खासकर गांवों में विभिन्न प्रकार के अंधविश्वास पर लोग यकीन करते हैं। लेकिन आज हम आपको राजस्थान के चूरू जिले के एक ऐसे गांव के बारे में बताने वाले है जहां लोग किसी भी प्रकार के अंधविश्वास पर यकीन नहीं करते हैं। यहां तक की इस गांव में कोई मंदिर भी मौजूद नहीं है, साथ ही गांव के लोग नदी में मृतकों की अस्थियां भी प्रवाहित नहीं करते हैं।
'लांबा की ढाणी' नामक यह गांव चूरू की तारानगर तहसील में स्थित है। यहां के लोग अंधविश्वास पर नहीं बल्कि मेहनत व कर्मवाद पर भरोसा करते हैं। गांव के युवाओं ने शिक्षा, चिकित्सा और व्यापार के क्षेत्र में सफलता की ऊंचाई पर पहुंच रहे हैं।
गांव में नहीं है एक भी धार्मिक स्थल
इस अनूठे गांव में एक भी धार्मिक स्थल मौजूद नहीं है। 105 घरों की आबादी वाले इस गांव में जाट समुदाय के कुल 91 परिवार, नायक समाज के चार परिवार और मेघवालों के दस परिवार रहते हैं। अपनी लगन व मेहनत से गांव के लोग सेना, पुलिस, रेलवे व चिकित्सा के क्षेत्र में अपना नाम रोशन कर रहे हैं।
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नदियों को बचाने के लिए चलाई गई थी परंपरा
80 वर्षीय ग्रामीण एडवोकेट बीरबल सिंह लांबा ने जानकारी दी कि लगभग 65 साल पहले गांव के लोगों ने सामूहिक रूप से नदियों को बचाने के लिए यह फैसला लिया था कि गांव में किसी की भी मौत के बाद अस्थियों को नदी में प्रवाहित नहीं किया जाएगा, बल्कि इन अस्थियों को दोबारा जला कर राख कर दिया जाता हैं।
आस्तिक होने के बाद भी नहीं है कोई मंदिर
इस गांव की अनोखी बात यह है कि यहां लोग सुबह उठते ही बस अपने काम पर ध्यान देते है। भगवान में आस्था होने के बावजूद यहां कोई मंदिर या तीर्श स्थल मौजूद नहीं है। गांव के लोगों का कहना है कि 'मरण री फुरसत कोने, थे राम के नाम री बातां करो हो' यानि हमे मरने की फुरसत नहीं हैं और आप राम का नाम लेने की बात कर रहे हो। लोग अंधविश्वास से दूर रहकर केवल अपनी मेहनत पर विश्वास करते हैं।
आजादी में अपना योगदान दे चुका है यह गांव
ग्रामीण ईश्वर सिंह ने बताया कि उनके पिता स्वर्गीय नारायण सिंह लांबा ने देश की आजादी में अपना योगदान दिया था। उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के साथ साथ 1965 का युद्ध और 1971 का युद्ध लड़ा था। आज भी गांव के युवाओं में यह देश प्रेम देखने को मिलता है।