Rajasthan Politics: एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की रिपोर्ट के मुताबिक वंशवादी राजनीति के मामले में राजस्थान उत्तर भारत में उत्तर प्रदेश के बाद दूसरे स्थान पर आता है। आपको बता दें कि राजस्थान के 234 विधायकों और सांसदों पर किए गए अध्ययन के मुताबिक इनमें से बड़ा हिस्सा राजनीतिक परिवार से है। यह राज्य के शासन में राजनीतिक वंश की गहरी जड़े होने का संकेत देता है।

एडीआर रिपोर्ट के कुछ मुख्य निष्कर्ष 

कदर रिपोर्ट के मुताबिक 234 निर्वाचित प्रतिनिधियों में से 43 राजनीतिक परिवारों से हैं। इसी के साथ पुरुष राजनेताओं के संदर्भ में 210 में से 31 विधायक और सांसद वंश वादी हैं। इतना ही नहीं बल्कि महिला राजनेताओं के लिए स्थिति तो और भी चौंकाने वाली है। यहां 24 में से 12 की पारिवारिक पृष्ठभूमि राजनीति में है। अगर उत्तर प्रदेश की बात करें तो 141 वंशवादी के साथ यह सूची में सबसे ऊपर है। 

राजस्थान में प्रमुख राजनीतिक राजवंश 

लोकसभा में शीर्ष तीन राजनीतिक परिवार 

दुष्यंत सिंह (झालावाड़ बारां एमपी)
दादी:
विजयाराजे सिंधिया (भाजपा सह संस्थापक, आठ बार एमपी)
माता: वसुंधरा राजे (राजस्थान की दो बार मुख्यमंत्री, दो बार केंद्रीय मंत्री, 6 बार एमएलए, पांच बार एमपी)

बृजेंद्र सिंह ओला (झुंझुनू सांसद) 
पिता:
शीशराम ओला (पांच बार सांसद और आठ बार विधायक) 

राहुल कस्वां (चूरू सांसद) 
दादा:
दीपचंद कस्वां (विधायक)
पिता: राम सिंह कस्वां (विधायक और सांसद) 

राज्यसभा में शीर्ष राजनीतिक परिवार 

सोनिया गांधी 
ससुर:
जवाहरलाल नेहरू (देश के पहले प्रधानमंत्री) 
सास: इंदिरा गांधी (पूर्व प्रधानमंत्री)
पति: राजीव गांधी (पूर्व प्रधानमंत्री) 

मुकुल वासनिक 
पिता:
बालकृष्ण (लोकसभा डिप्टी स्पीकर, लोकसभा एमपी, राज्यसभा एमपी) 

रणदीप सुरजेवाला 
पिता:
शमशेर (चार बार एमएलए, राज्य सभा एमपी) 

राजनीतिक परिवारों से महिला नेता 

वसुंधरा राजे, डॉक्टर प्रियंका चौधरी, रीता चौधरी, सिद्धि कुमारी, कल्पना देवी,दिप्ती माहेश्वरी और शांता मीणा।

राजनीतिक वंश से प्रभावशाली विधायक 

सचिन पायलट (टोंक विधायक) -केंद्रीय मंत्री राजेश पायलट के पुत्र 

हरेंद्र मिर्धा (नागौर विधायक)-केंद्रीय मंत्री और विधानसभा अध्यक्ष की विरासत वाला परिवार 

जगत सिंह, झाबर सिंह खर्रा, रोहित बोहरा, अनिल कुमार शर्मा,  मनोज कुमार, वीरेंद्र सिंह, गुरवीर सिंह, अरुण चौधरी, रुपिंदर सिंह कुन्नार, रामस्वरूप लांबा और डॉक्टर शैलेंद्र सहित कई बड़े विधायक इसी वंशवादी पृष्ठभूमि से आते हैं। 

क्यों है राजस्थान में इतना वंशवाद 

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की रिपोर्ट वंशवाद की राजनीति के उदय और उसके बने रहने के कई कारण बता रही है। रिपोर्ट का कहना है कि राजनीतिक परिवारों के पास अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए संसाधन और प्रभाव होते हैं। इसी के साथ राजनीतिक दलों का केंद्रीय नेतृत्व अक्सर वंश आधारित उम्मीदवारों को फेवर करता है। इतना ही नहीं बल्कि राजनीतिक दल सूचना के अधिकार अधिनियम के दायरे में नहीं आते, इस वजह से प्रदर्शित सीमित हो जाती है। यही कारण है कि राजस्थान में वंशवादी राजनीति फल फूल रही है और योग्यता आधारित नेतृत्व पर काफी ज्यादा भारी पड़ रही है।

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