Health Department: भारत सरकार द्वारा नई दवाओं के लाइसेंस और क्लीनिकल परीक्षण की प्रक्रिया को सरल बनाया जा रहा है। दरअसल यह कदम दवा क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए उठाए जा रहा है। स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा औषधि एवं क्लीनिकल परीक्षण नियम में प्रस्तावित बदलावों का एक मसौदा तैयार किया गया है। आपको बता दें कि इसका उद्देश्य भारत में दवा परीक्षणों में तेजी लाना, कागजी कार्रवाई को कम करना और साथ ही दवा अनुमोदन की दक्षता में भी सुधार करना है।
ड्राफ्ट नियमों में घोषित प्रमुख बदलाव
ड्राफ्ट नियमों में सबसे ज्यादा उल्लेखनीय बदलाव में से एक है क्लीनिकल परीक्षण लाइसेंस प्रक्रिया को 90 दिनों के समय से घटाकर 45 दिन करना। इसके बात बाजार में नई और कम जोखिम वाली दवाओं को तेजी से लॉन्च करने में काफी ज्यादा मदद मिलेगी।
इसी बीच आपको बता दें कि कुछ श्रेणियां की दवाओं, जैसे कि जैवउपलब्धता और जैवसमतुल्यता के लिए अब लाइसेंस के लिए आवेदन नहीं करना होगा। इसके बजाय सिर्फ लाइसेंसिंग प्राधिकरण को मात्र सूचित कर देना ही प्राप्त होगा।
फार्मा उद्योग और जनता के लिए फायदा
अब लाइसेंसिंग फाइलों की संख्या लगभग 50% कम हो जाएगी। इससे उद्योग और नियामक निकायों दोनों पर ही बोझ कम होगा। इसी के साथ तेज परीक्षणों से नई दवाओं के लिए तेजी से इनोवेशन पर बाजार तक पहुंच संभव हो पाएगी। इससे जन स्वास्थ्य में सुधार होगा।
इसी के साथ केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन जरूरी कामों पर ध्यान केंद्रित करते हुए संसाधनों का और ज्यादा अच्छे से इस्तेमाल कर पाएंगे।
दवा लाइसेंस के लिए पारदर्शी समय सीमा
आपको बता दें कि यदि आवेदन और सफेद सही होते हैं तो आपत्तियां 5 दिनों के अंदर उठाई जाएंगी। इसी के साथ 6 से 15 दिनों के अंदर भौतिक निरीक्षण हो जाएगा। साथ ही अंतिम लाइसेंस आवेदन के 16 से 20 दिनों के अंदर जारी कर दिया जाएगा।
सुझाव देने का अवसर
अब स्वास्थ्य मंत्रालय ने मसौदे को सार्वजनिक परामर्श के लिए खोल दिया है। इसके लिए दवा विशेषज्ञों, उद्योगों के हितधारकों और आम नागरिकों से सुझाव मांगे जा रहे हैं। साथ ही गुण, दोष या फिर संभावित सुधार से संबंधित सभी टिप्पणियों को 30 दिनों के अंदर प्रस्तुत भी किया जा सकता है।
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