Rajasthan Jalore Heatwave: राजस्थान में गर्मी बढ़ती जा रही है। जालौर में पारा 43 डिग्री सेल्सियस के पार पहुंच चुका है। इस भयंकर गर्मी में एक पुराना देसी जुगाड़ बहुत प्रभावशाली तरीके से वापस आ रहा‌ है। हम बात कर रहे हैं छागल की। यह पारंपरिक जल पोत सदियों से ग्रामीण, किसानों और सैनिकों के लिए काम आ रहा है। 

क्या होता है छागल

छागल मोटे परतदार सूती कपड़े से बना थैला होता है। इसका एक छोर संकरा होता है, बिल्कुल बोतल के मुंह जैसा। पानी न छलके इसके लिए लकड़ी के स्टॉपर या फिर एक तंग गांठ से इसके मुंह को सील किया जाता है। इसकी खास बात यह है कि बिना बिजली या फिर फ्रिज की सहायता से यह पानी को प्राकृतिक रूप से ठंडा रखता है ‌‌। दरअसल कपड़े की नम बाहरी परत पानी को धीरे-धीरे इवेपोरेट होने देती है। इसके बाद छागल के अंदर का तापमान कम होने लगता है। पुराने समय में लोग इन्हे साइकिल से टांग कर काम पर जाते थे। इसी के साथ यह सैनिकों के लिए भी काफी फायदेमंद होती थी। 

आधुनिकता के बीच पारंपरिक तरीका 

यूं तो आजकल कई तरह के पानी की बोतल आ रही है। प्लास्टिक की बोतल, स्टेनलेस स्टील की बोतल और इसी के साथ हाई एंड थर्मल कंटेनर भी।  हालांकि यें विकल्प प्रभावशाली तो है लेकिन स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए नुकसानदेह होते हैं। प्लास्टिक की बोतल जब रोशनी के संपर्क में आती है तो पानी में हानिकारक रसायन छोड़ देती है। इसके विपरीत छागल पर्यावरण अनुकूल विकल्प है। 
पुराने समय में यह किसानों और दूर खेतों में जाने वाले मजदूरों के लिए काफी फायदेमंद होता था। इन सूती पानी के थैलों को काफी मेहनत से और सावधानी से बनाया जाता था। भले ही आज कितनी भी स्टाइलिश बोतलें क्यों ना आ गई हो लेकिन छागल के आगे नहीं टिक सकती।

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