Maharaja Surajmal Cast : महाराजा सूरजमल के वंशज युवराज अनिरुद्ध ने पिता महाराजा विश्वेंद्र सिंह से विवाद के बाद खुद को जादौन राजपूत बताना शुरू कर दिया है। भरतपुर राजवंश का निकास करौली जादौन राजवंश से होने का दावा किया है। वहीं महाराजा विश्वेंद्र सिंह ने अपने जन्मदिन पर कहा कि करौली राजवंश से निकास की बात करने वालों को जवाहर बुर्ज जाकर देखना चाहिए, वहां राजवंश की पूरी वंशावली है। ऐसे में पूरे राजस्थान में सबसे बड़ा सवाल खड़ा हो गया है कि महाराजा सूरजमल कौन थे जाट या राजपूत? इसके लिए राजस्थान वन और भरतपुर लाइव की टीम ने महाराजा सूरजमल के साथ युद्धों में मौजूद रहने वाले सूदन कवि द्वारा लिखित सुजान चरित्र का अध्ययन किया। इसके साथ ही जवाहर बुर्ज का भी भ्रमण किया। जिससे साफ पता चलता है कि महाराजा सूरजमल जाट थे और करौली राजवंश से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर कोई संबंध नहीं था। 

महाराजा सूरजमल के ऊपर लिखित सुजान चरित्र में स्पष्ट तौर पर उल्लेख है कि महाराजा सूरजमल मां दुर्गा के उपासक थे। उनकी कुलदेवी के तौर पर मां दुर्गा का स्पष्ट उल्लेख पेज नंबर 286 पर है। इसके अलावा वह भगवान कृष्ण के उपासक थे। सुजान चरित्र के पेज 291 से 296 पर कृष्ण की लीलाओं का जिक्र है। वहीं पूरी सुजान चरित में एक बार भी मां कैला देवी या कैला मैया का कोई जिक्र नहीं है। करौली राजवंश या करौली शब्द तक का कहीं कोई जिक्र नहीं है। जबकि सुजान चरित्र में जयपुर-मथुरा तक का जिक्र है। लेकिन भरतपुर के बिल्कुल पास में स्थित करौली और कैला देवी मां का कोई जिक्र नहीं है। ऐसे में यदि महाराजा सूरजमल एक बार भी कभी करौली गए होते या कैला देवी मैया के कुलदेवी होने पर वहां गए होते तो क्या सुजान चरित में इसका जिक्र न होता? 

महाराजा सूरजमल को खुद के जाट होने पर था गुमान 

हिन्दू ह्रदय सम्राट महाराजा सूरजमल को अपने जाट होने पर गुरूर था। सुजान चरित्र में चार स्थानों पर जाट राजा के तौर पर संबोधित किया गया है। जबकि पूरी सुजान चरित्र में एक बार भी कहीं राजपूत शब्द तक का इस्तेमाल नहीं किया गया है। इसके अलावा सुजान चरित्र में महाराजा बदन सिंह और जाट शासक राजा चूड़ामन का भी कई बार जिक्र है। लेकिन करौली राजवंश के किसी राजा का नाम तक सुजान चरित्र में नहीं हैं। दूसरी तरफ ऐसी कोई वजह नहीं है कि महाराजा बदन सिंह और महाराजा सूरजमल राजपूत होते हुए भी खुद को जाट बताते। क्योंकि पूरे राजस्थान में राजपूत राजाओं का दबदबा था। महाराजा सूरजमल को जाट राजा होने की वजह से कई नुकसान भी उठाने पड़े थे। 

आपको याद रहे है कि सुजान चरित्र एकमात्र किताब है जो कि पूरी तरह से महाराजा सूरजमल के समकालीन है। सुजान चरित्र, महाराजा सूरजमल के साथ युद्ध में मौजूद रहने वाले कवि सूदन द्वारा लिखी गई है। वर्तमान में बाजार में उपलब्ध किताबें पिछले 100 सालों के भीतर लिखी गई हैं। ऐसे में स्पष्ट है कि महाराजा सूरजमल की कुलदेवी मां दुर्गा थीं। इसी वजह से कुम्हेर में किले के निर्माण के वक्त मां चामुंडा के मंदिर की स्थापना करवाई थी। युवराज अनिरुद्ध के दावों के पीछे कोई भी ऐतिहासिक तथ्य नहीं है जो कि यह साबित करता हो कि भरतपुर राजवंश का निकास करौली राजवंश से हुआ है। जबकि इसके पीछे कई ऐतिहासिक तथ्य हैं जो साबित करते हैं महाराजा सूरजमल जाट थे। 

जवाहर बुर्ज खुद दे रहा जाट राजवंश की गवाही

लोहागढ़ किले के अंदर स्थित जवाहर बुर्ज का भरतपुर लाइव टीम ने अध्ययन किया। 18 फीट ऊंचे जवाहर बुर्ज में राजपरिवार की पूरी वंशावली दर्ज है। जिसमें सबसे ऊपर नाम भगवान श्री कृष्ण का नाम दर्ज है, जबकि सबसे नीचे भरतपुर राजवंश के अंतिम शासक महाराजा बृजेंद्र सिंह का नाम अंकित है। वहीं 74वें स्थान पर बालचंद का नाम अंकित है, हालांकि जैसा दावा किया जा रहा है वो बालचंद नाम से स्पष्ट नहीं हैं। क्योंकि बालचंद जी के नाम के पीछे जादौन नहीं लिखा हुआ है। चूंकि भगवान श्रीकृष्ण का नाम सबसे ऊपर है तो यह स्पष्ट है कि पूरे राजवंश की उत्पत्ति यदुवंश है। महाराजा सूरजमल से लेकर अंतिम शासक महाराजा बृजेंद्र सिंह का नाम अंकित है जो कि स्वयं सिनसिनवार जाट थे। इससे काफी हद तक स्पष्ट है कि भरतपुर राजवंश यदुवंशी जाट हैं। जवाहर बुर्ज पर जादौन राजवंश का कहीं कोई उल्लेख नहीं है। 

जादौन राजवंश के राजपूत होने पर ही संशय

युवराज अनिरूद्ध जिस जादौन राजवंंश के हवाले से खुद को राजपूत बता रहे हैं। असलियत यह है कि जाटौन राजवंश के राजपूत होने पर ही कई तरह के संशय रहे हैं। ऐतिहासिक तथ्यों के मुताबिक करौली राजवंश के मथुरा से निकास की वजह से यदुवंशी के रूप में जाना जाता था। करौली राजवंश की स्थापना विजय पाल (बीजल पाल) ने की थी जो कि खुद को श्रीकृष्ण का वंशज मानते थे। जादौन राजवंश, भगवान श्रीकृष्ण के चंद्रवंशी वंश से उत्पत्ति का दावा करते हैं। ऐसे में उन्हें बाद के दिनों में यदुवंशी राजपूत कहा गया।

वहीं भरतपुर राजवंश का निकास भी भगवान श्री कृष्ण से है। ऐसे में यह संभव है कि भगवान श्री कृष्ण से जादौन राजवंश और भरतपुर राजवंश का निकास हुआ है। लेकिन जादौन राजवंश और भरतपुर राजवंश का आपस में कोई सीधा संबंध नहीं है। 

भरतपुर राजवंश को लेकर क्यों पैदा हुई भ्रम की स्थिति

करौली राजवंश का निकास मथुरा से है। ऐसे में करौली राजवंश भगवान श्रीकृष्ण का उपासक रहा है। वहीं महाराजा बदन सिंह से लेकर महाराजा सूरजमल तक भगवान कृष्ण के उपासक रहे हैं। इसका जिक्र बाकायदा सुजान चरित्र में है। भरतपुर राजवंश ने गोवर्धन और वृंदावन क्षेत्र में बड़े स्तर पर धार्मिक स्थलों का निर्माण करवाया। दोनों राजवंश भगवान श्रीकृष्ण के उपासक रहे हैं। इसी वजह से भरतपुर राजवंश को करौली राजवंश से जोड़ा जा रहा है, जबकि यह हकीकत से काफी दूर है। 

भरतपुर राजवंश का राजपूतों से निकास बताने वालों से कुछ सवाल

1. करौली के जादौन राजवंश का 1200 ईस्वी तक आगरा, भरतपुर, मथुरा, गुड़गांव तक राज था। अगर भरतपुर राजवंश का निकास करौली के जादौन राजवंश से था तो शुरुआत से महाराजा सूरजमल या महाराजा बदन सिंह के पूर्वज राजा क्यों नहीं थे? यह ऐतिहासिक तथ्य है कि महाराजा सूरजमल के पूर्वज सिनसिनी गांव स्थापना के समय जमींदार थे। मुगलों से ब्रज क्षेत्र के मंदिरों और महिलाओं की सुरक्षा के लिए जाटों ने अपनी सेना बनाई। इसके बाद तमाम पीढ़ियों के संघर्ष के बाद भरतपुर राजवंश की स्थापना हुई। 

2. ऐतिहासिक तथ्य है कि महाराजा गोपाल सिंह ने 1723 से लेकर 1730 तक करौली के कैला देवी मंदिर का निर्माण करवाया। इस समय पर महाराजा सूरजमल की उम्र 16 वर्ष से 23 वर्ष के बीच थी। ऐसे में महाराजा सूरजमल के सामने मंदिर का निर्माण हुआ था। करौली राजवंश की तरह अगर भरतपुर राजवंश की भी कैला देवी मैया कुलदेवी थीं तो महाराजा सूरजमल ने मंदिर निर्माण में हिस्सा क्यों नहीं लिया, सुजान चरित्र में कैला देवी का एक बार भी जिक्र क्यों नहीं है?