Shrawan Daga Story: आपने ऐसी कई कहानी सुनी होगी जिसमें आपने देखा होगा कि कैसे एक व्यक्ति ने अपने पारिवारिक व्यवसाय को अपनी मेहनत से आगे बढ़ाया। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे इंसान के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होंने अपना भाग्य खुद बनाने का फैसला किया। हम बात कर रहे हैं जोधपुर के श्रवण डागा की। इन्होंने एक साधारण शुरुआत की और मात्र ₹5000 की पूंजी के साथ कृष्ण हर्बल और आयुर्वेद की नींव रखी। आज उनका यह व्यवसाय 70 करोड़ रुपए के टर्नओवर और जूस से लेकर कॉस्मेटिक तक 170 आयुर्वेदिक उत्पादों के पोर्टफोलियो के साथ कामयाबी के शिखर को छू रहा है ।
परंपरा से अलग
श्रवण का परिवार जोधपुर में लोहा और इस्पात का व्यवसाय करता था। सभी यह बात जानते थे कि श्रवण को आगे जाकर इसी व्यवसाय को संभालना है। लेकिन श्रवण ने कुछ और करने की ठानी। श्रवण बचपन में काफी शरारती थे और पढ़ाई में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं थी। इसी वजह से उन्हें स्कूली शिक्षा के लिए माउंट आबू भेज दिया गया और बाद में उन्होंने अपनी शिक्षा जोधपुर के दिल्ली पब्लिक स्कूल से पूरी की। इसके बाद उन्होंने सोमानी कॉलेज ऑफ कॉमर्स से बीकॉम की डिग्री हासिल की और 23 साल की उम्र तक आते आते अपना खुद का व्यवसाय शुरू कर दिया।
हर्बल क्रांति की शुरुआत
श्रवण ने अपने व्यवसाय की यात्रा 600 वर्ग फीट के छोटी सी कार्यशाला से शुरू की। उनका यह कारखाना एक मामूली रसोई की तरह दिखता था। उन्होंने अपना पहला बैच एलोवेरा जूस की 50 बोतलों का बनाया। उनके पहले बैच पर इतनी अच्छी प्रतिक्रिया मिली कि उन्होंने अगला कदम आंवला जूस बनाकर उठाया। धीरे-धीरे उन्होंने बाकी हर्बल उत्पादों में विस्तार किया। आज श्रवण की कंपनी के पास 15000 वर्ग मीटर की विशाल विनिर्माण इकाई है।
बहुत आई चुनौतियां
ऐसा नहीं था कि श्रवण की राह काफी आसान थी। बल्कि उनके सामने कई बाधाएं आईं। सबसे बड़ी बाधा यह थी कि लोगों को आयुर्वेद उत्पादों की प्रभावशीलता के बारे में ज्ञान नहीं था। इस समस्या का निवारण करने के लिए उन्होंने व्यापार प्रदर्शनियों में भाग लिया और वहां पर ग्राहक ढूंढने के साथ-साथ यह भी जाना कि लोगों को आखिर क्या चाहिए। लोगों की मांग के अनुसार ही उन्होंने हर्बल पाउडर, टैबलेट और व्यक्तिगत देखभाल उत्पादों को शामिल किया।
महामारी के दौरान आया बड़ा बदलाव
कोरोना के वक्त लोगों ने आयुर्वेदिक समाधानों की ओर वापसी की। पहले लहर के दौरान श्रवण की फैक्ट्री मात्र 25% की क्षमता पर चल रही थी। लेकिन दूसरी लहर के बाद मांग इतनी ज्यादा बढी की कच्चे माल की खरीद चार गुना तेज हो गई। इसके बाद श्रवण ने अपने उत्पाद की पैकेजिंग को एक नया रूप दिया और उनका यह निर्णय बाजार को आकर्षित करने में फायदेमंद साबित हुआ।
इसे भी पढ़े:- Sikar Ke Pede: इटली और ईरान तक फैली हुई है राजस्थान की इस मिठाई की ख्याति, 50 सालों से बनी हुई है लोगों की पसंद