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अदालत ने कहा है कि बच्चे को पालने में बहुत की खास भूमिका होती है। दुनिया में आने के बाद बच्चा अपनी मां की दृष्टि से दुनिया देखता है। वहीं आगे कहा कि मां दूसरों की जगह ले सकती है, लेकिन मां की जगह कोई नहीं ले सकता है।

राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, अजमेर को निर्देश दिए गए हैं कि याचिकाकर्ता की 10वीं और 12वीं की मार्कशीट में उसकी मां के नाम में सुधार करें। यह आदेश जस्टिस अनूप ढंढ ने चिराग नरूका  की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए हैं।

मां की जगह कोई नहीं ले सकता
इसके साथ ही अदालत ने कहा है कि बच्चे को पालने में बहुत की खास भूमिका होती है। दुनिया में आने के बाद बच्चा अपनी मां की दृष्टि से दुनिया देखता है। वहीं आगे कहा कि मां दूसरों की जगह ले सकती है, लेकिन मां की जगह कोई नहीं ले सकता है।
बच्चे को दुनिया में लाने वाली मां ही होती है, इसलिए मां को उसके बच्चों के शैक्षणिक प्रमाणपत्रों में अपना नाम दर्ज कराने का पूरा अधिकार है।

मां का नाम केवल विवरण नहीं

कोर्ट ने यह भी कहा कि शैक्षणिक रिकॉर्ड में मां का नाम केवल विवरण नहीं, बल्कि नाम ही बच्चे की पहचान का सूत्र होता है। मां बाप से पहला तोहफा बच्चे को नाम ही मिलता है। दुनिया में बेनाम होने का मतलब गायब होना है। नाम इंसान की कानूनी , सामाजिक पहचान बन जाता है।

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सही फॉर्मेट में आवेदन दाखिल करें

बता दें कि याचिकाकर्ता ने अपने माध्यमिक शिक्षा बोर्ड में अपनी मां के नाम को सही करवाने के लिए आवेदन किया था, जिसे बोर्ड द्वारा खारिज कर दिया गया था। हाईकोर्ट ने अब आदेश दिया है कि सही फॉर्मेट में आवेदन दाखिल करें। वहीं बोर्ड आदेश की तारीख से तीन महीने के अंदर मार्कशीट में याचिकाकर्ता की मां का नाम सही करके नए सिरे से मार्कशीट जारी करे।

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