Rajasthan Freedom Fighter: देश को अंग्रेजों के हाथों से छुड़ाने में कई वीर जवानों ने अपनी जान की कुर्बानी दी थी। उन्हीं महानायकों में से एक थे बीकानेर के सिंधिया राजवंश के खजांची अमरचंद बांठिया, जो राजस्थान के ऐसे पहले व्यक्ति थे, जिन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा फांसी लगाई गई थी। उन्होंने बचपन में ही ठान लिया था कि वे अपने वतन के लिए अपनी जान तक कुर्बान कर देंगें। शहीद अमरचंद के पिता पेशे से एक कारोबारी थे, घाटे में चलने के कारण उनका पूरा परिवार बीकानेर से ग्वालियर चला गया। यहां उन्होंने एक बार फिर अपना कारोबार शुरू किया। 

अंगेजों के खिलाफ उठने लगी थी आवाज

ये वो दौर था जब देश के कई छोटी-छोटी जगहों पर अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठने लगी थी। साल 1857 में आजादी की जंग लगातार तेज हो रही थी, ऐसे में अमरचंद कई बार आजादी की लड़ाई में हथियार लेकर हिस्सा लेने भी जाते थे। इसी दौरान अंग्रेज़ों से लोहा लेने वाली झांसी की रानी लक्ष्मीबाई सबसे आगे आई थीं और फिरंगियों को देश से खदेड़ने के लिए सिर पर कफन बांध चुकी थीं। इसी समय आसपास के क्षेत्रों में अंग्रेजों की गुलाम रही रियासतों पर रानी हमला कर रही थीं और झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने ग्वालियर पर भी कब्जा कर लिया था। 

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अमरचंद्र ने क्रांतिकारियों के लिए खोला था खजाना 

जंग में रानी लक्ष्मीबाई का सारा खजाना खाली हो गया था। ऐसे में पूरे क्षेत्र में आर्थिक संकट की घड़ी पैदा हो गई थी। ऐसे में ग्वालियर के खजांची अमरचंद ने ग्वालियर के खजाने को क्रांतिकारियों के लिए खोल दिया और भामाशाह बनकर पूरा खजाना उन्हें दे दिया। इनकी मदद से लक्ष्मीबाई अंग्रेजों पर विजय पा सकीं। इसके बाद अंग्रेज सरकार द्वारा अमरचंद के कृत्य को राजद्रोह घोषित किया गया और उन्हें सरे राह सर्राफा बाजार में नीम के पेड़ पर फांसी से लटका दिया गया।