Rajasthan Village: प्राचीन समय में राजस्थान में सती प्रथा के तहत महिलाएं अपने पति की मृत्यु के बाद अपने प्राणों की आहुति दे देती थी। लेकिन यहां एक ऐसी सती भी हुई थी, जिन्होंने अपने पति नहीं बल्कि बेटे के लिए अपने प्राण त्याग दिए थे। यह घटना नागौर के एक छोटे से गांव भदाणा की है। जहां सती तुरछा बाई के बेटे गोविन्द ने अपने गांव की रक्षा करते हुए अपनी जान दे दी थी। जिसके बाद माता ने अपने बेटे के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। आज भी इस गांव में उनकी पूजा की जाती है। 

बनी है माता के हाथ की प्रतिमा

ग्रामीणों ने बताया कि जब सती तुरछा बाई अपने बेटे के लिए सती हो गई थी, उसके बाद से ही यहां लोगों ने उनकी पूजा करना शुरू कर दिया था। गांव के मंदिर में तुलछा बाई के एक हाथ की मूर्ति बनी हुई है। देवीलाल गोण ने कहा कि उस समय फोटो नहीं हुआ करती थी, इसलिए उनके हाथ को ही प्रतीक के रूप में माना जाता था। तभी से आज तक उनके एक हाथ की पूजा होती आ रही है। 

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माता का चमत्कार 

तुलछा बाई के द्वारा किए गए चमत्कार के बारे में कहा जाता है कि एक बार बांदरवाड़ा निवासी सत्यनारायण के शरीर में काफी दर्द रहता था, जिसके बाद उन्होंने लगभग 270 दूर जाकर भदाणा गांव में माता की मूर्ति की परिक्रमा लगाई, जिसके बाद से उनके शरीर में दर्द कम हो गया और वे पूरी तरह से स्वस्थ हो गए। गांव के लोग तुलछा बाई को आज भी दैवीय शक्ति के रूप में पूजते है। माना जाता है कि यहां आए भक्तों का हर कष्ट दूर हो जाता है। मान्यता है कि यहां आकर परिक्रमा लगाने से किसी भी प्रकार के शरीर के दर्द से राहत मिलती है।